प्रयागराज :: बहुत काम का है घंटाघर का ये गुदड़ी बाजार, कबाड़ में मिलता है ये खास सामान,,,।
प्रयागराज के चौक इलाके में घंटाघर के पास एक अनोखी बाजार है, जिसे कोई कबाड़ बाजार कहकर बुलाता है तो कोई इसे गुदड़ी बाजार कहता है। यह बाजार 150 साल से भी पुराना है। इसकी खासियत यह है कि यहां लोहे का पुराने से पुराना पार्ट्स भी मिल जाता है। जो पार्ट्स कहीं नहीं मिलता है, वह यहां आसानी से मिल जाता है इसलिए यह बाजार लोगों के काफी काम आता है। हालांकि बदलते वक्त के साथ अब कुछ दुकानों पर लोहे के पुराने कल-पुर्जों के साथ ही नए पार्ट्स भी बिकने लगे हैं पर इसकी प्रसिद्धि पुराने पार्ट्स के लिए ही है।
घंटाघर की तंग गली में यह बाजार है, जहां आप किसी वाहन से नहीं जा सकते हैं। यहां जाने के लिए पैदल ही चलना पड़ता है। इस बाजार में तकरीबन 50 दुकानें हैं। इन्ही 50 में एक दुकानदार हैं मोहम्मद इदरीश, जिनके परदादा ने बाजार में कबाड़ की दुकान खोली थी। आज भी इदरीश लोहे के सामानों का ही कारोबार कर रहे हैं।
बाजार में पुराने कपड़े की खपरैल वाली एक 100 साल पुरानी दुकान भी है। इस दुकान में लोगों से खरीदा गया पुराना कपड़ा, वाहन मेकैनिकों को बेचा जाता है। शहर के सभी हिस्से के मेकैनिक दुकान में पुराना कपड़ा खरीदने आते हैं।
पुराने कल पुर्जों के कारोबारी विजय पांडेय कहते हैं कि कभी यहां की दुकानें रेलवे के कबाड़ से पटी रहती थीं। रेलवे का लोहा कबाड़ होने के बाद भी कीमती होता है। इसी वजह से कबाड़ लोहा खरीदने के लिए आसपास के जिलों से लोग बाजार में आते थे।
घंटाघर की तरह इस कबाड़ बाजार में भी काफी भीड़ रहती थी। यहीं से खरीदे गए लोहे से फावड़ा, हथौड़ा और खेती में उपयोग होने वाले सामान बनाए जाते थे। अब रेलवे का कबाड़ नहीं आता है। पुरानी मशीनों के नट-बोल्ट का कारोबार होता है। फिर भी आसपास के जिलों से लोग पुराने लोहे के सामान खरीदने आते हैं।
घंटाघर के पास रहने वाले मुन्ना मजदूर बताते हैं कि कभी घंटाघर के आसपास अमरूद की बाग थी। जमींदार ने अपनी आय का स्रोत बढ़ाने के लिए बाग के एक हिस्से में दुकानें बनाकर किराए पर दे दी। धीरे-धीरे किराए पर दुकान चलाने वाले दुकानदारों ने ही दुकानें खरीद लीं।
तीन दशक पहले तक बाजार की सभी दुकानें खपरैल थीं। चौक रौशन हो गया पर गुदड़ी बाजार की दुकानों में लानटेन जलती रही। बदलते समय के साथ दुकानों में परिवर्तन हो रहा है, लेकिन बाजार का पुराना स्वरूप बरकरार है।