Headlines
Loading...
शिव के त्रिशूल व सुदर्शन चक्र के टक्कर से प्रकट हुए थे बाबा सेमराध, पुराणों में मिलता है वर्णन,,,।

शिव के त्रिशूल व सुदर्शन चक्र के टक्कर से प्रकट हुए थे बाबा सेमराध, पुराणों में मिलता है वर्णन,,,।

काशी प्रयाग और विंध्य के मध्य गंगा तट पर स्थित प्राचीन बाबा सेमराध धाम धाम में जमीन से पंद्रह फिट नीचे स्थित स्वयंभू शिवलिंग अपने आप में अद्भुत है। जिले का यह पहला स्थल है। जहां न सिर्फ देश का पांचवा कुम्भ मेला लगता है, बल्कि यह पवित्र स्थल अपने आप में इतिहास को भी समेटे हुए है। 

इसका उल्लेख श्रीमद भागवत सहित अन्य कई पुराणों में मिलता है। यहां प्रतिवर्ष माघ माह में कल्पवास मेला भी लगता है। सावन माह में यहां दूर-दूर से कांवड़ियां बाबा का जलाभिषेक करने पहुंचते हैं। 

भदोही जनपद के जंगीगंज कस्बे से 13 किलोमीटर दक्षिण और सीता समाहित स्थल सीतामढ़ी से 15 किमी पूरब उत्तर वाहिनी गंगा के तट पर स्थित सेमराध नाथ महादेव मंदिर काशी, प्रयाग और विंध्य का अनूठा संगम है। पुराणों और ग्रंथों में इसे उप ज्योतिर्लिंग की संज्ञा दी गई है। 

गुरु पद उत्तराधिकारी स्वामी करुणा शंकर दास ने बताया कि इस का उल्लेख पद्म पुराण, शिव पुराण, लिंग पुराण सहित श्रीमदभागवत के दशम स्तम्भ में भी मिलता है। पद्म पुराण में उल्लिखित श्लोक में सेमराधनाथ,(समृद्धिनाथ) की पौराणिकता और ऐतिहासिकता का काफी हद तक पता चलता है।

गंगासमीपेस्रत सूतीर्थमध्ये भवकष्टकूपात्समुद्धारणाय। कुपेस्थितं तं श्रीविश्वनाथां समराधिनाथं शरनं प्रपंध्ये। पद्म पुराण में वर्णित कथा के तहत काशी के शूलटंकेश्वर स्थल से भगवान शिव ने अपना त्रिशूल व तीर्थ राज प्रयाग के सोमेश्वर स्थल से द्वारिकाधीश भगवान श्रीकृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र एक दूसरे की ओर छोड़ा। दोनों अस्त्र काशी और प्रयाग के मध्य का पता लगाने के लिए छोडे गऐ थे। काशी-प्रयाग के मध्य शिव के त्रिशूल और श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र के टकराने से एक दिव्य अलौकिक दीप प्रज्जलित हुई। जिसमें से एक ज्योतिर्मय शिवलिंग का रूप बनकर धरती में समा गया। 
मंदिर के महंत विनोद गिरी ने बताया कि एक बार एक व्यापारी नाव पर सवार होकर व्यापार के लिए जा रहा था। इधर से गुजरने के दौरान उसकी नाव यहां आकर रूक गई। जिसके बाद भगवान शिव की प्रेरणा से वह यहां पहुंचा और उसे यहां बाबा सेमराधनाथ का चमत्कारीक शिवलिंग मिला। वह बाबा को अपने साथ ले जाने के लिए खुदाई करने लगा। वह जैसे-जैसे खुदाई करता बाबा नीचे खिसकते जाते। हार मारकर उसने यही पर बाबा की प्राण प्रतिष्ठा की और पूजन अर्चन कर चला गया। तब से लेकर आज तक बाबा जमीन की 15 फीट नीचे विराजमान हैं। शिवलिंग का आकर एक मीटर लंबा तथा आधा मीटर मोटे ब्यास में है, जो बायें ओर थोड़ा झुका है।

नई काशी में रूप में है इस स्थान की है पहचान

गुरु पद उत्तराधिकारी स्वामी करुणा शंकर दास ने बताया कि अन्य कई पुराणों में सेमराध स्थल का वर्णन मिलता है। इस स्थान की पहचान नई काशी के रूप में है। मां गंगा के बाये सेमराधनाथ है और उस पार विंध्य क्षेत्र है। कहते है विंध्य क्षेत्र में स्थित गौरा गांव में दक्ष प्रजापति ने विशाल यज्ञ किया था। यज्ञ में भगवान शंकर के भाग न लेने और उनका तिरस्कार करने पर सती ने हवन कुंड में अपना शरीर त्याग दिया था। यह क्षेत्र छानबे के नाम से भी जाना जाता है। 

हवनकुंड के भगन्नावशेष आज भी गौरा गांव में मौजूद है। हर वर्ष की तरह इस वर्ष श्रावण मास में बड़ी संख्या में कांवड़िया और श्रद्धालु बाबा सेमराधनाथ धाम में जलाभिषेक करते है। मान्यता है कि सच्चे मन से पूजन अर्चन करने पर देवाधिदेव सबकी मुरादें पूरी करते है। मंदिर परिसर में कल्पवृक्ष है, जो अपने आप में अद्भुत है। इस वृक्ष का आकार इस तरह है कि चारों तरफ लटकी लताओं से इसका स्वरूप कुटी के रूप में बन गया है। इसमें बैठने पर असीम शांति मिलती है।