त्रिलोचन महादेव मंदिर : यहीं महादेव ने तीसरा नेत्र खोलकर भस्मासुर को किया था भस्म,,,।
जौनपुर /वाराणसी। पवित्र सावन माह देवों के देव महादेव और उनके भक्तों को अति प्रिय है। भक्त अपने आराध्य भोलेनाथ के प्रति अगाध श्रद्धा और भक्ति जताने के लिए तमाम कठिनाइयों के बावजूद सावन माह में शिवलिंग पर जलाभिषेक का कोई अवसर नही छोड़ते।
सावन माह में काशीपुराधिपति बाबा विश्वनाथ के साथ अन्य प्रमुख मंदिरों में जलाभिषेक के लिए शिवभक्त नंगे पांव पैदल ही पहुंचते हैं। ऐसा ही एक प्रसिद्ध त्रिलोचन महादेव का मंदिर है। मंदिर से लोगों की अटूट आस्था जुड़ी हुई है।
कहा जाता है कि तीसरी नेत्र खोलकर बाबा भोले शंकर ने यहीं पर भस्मासुर को भस्म किया था।लखनऊ-वाराणसी राजमार्ग पर जौनपुर जनपद में स्थित त्रिलोचन महादेव मंदिर से कई मान्यता और रहस्यमय गाथाएं भी जुड़ी है।
कहा जाता है कि शिवलिंग समय के साथ बड़ा होता जा रहा है। 60 साल पहले शिवलिंग की ऊंचाई लगभग 02 फ़ीट थी जबकि आज यह ऊंचाई 3 फ़ीट से भी अधिक हो गयी है। समय काल में शिवलिंग की चमक भी बढ़ी है। मंदिर में स्थित पावन शिवलिंग के बारे में कहा जाता है स्वयंभू महादेव पाताल से यहां स्वयं विराजमान हुए हैं।
स्कंद पुराण में इस पावन शिवलिंग का उल्लेख है। वहीं, एक किंवदंती है कि यहां भगवान ब्रह्मा ने एक यज्ञ का आयोजन किया था, जिसके बाद शिव यहां प्रकट हुए थे। इस मंदिर के अंदर एक शिवलिंग और कई छोटे मंदिर भी हैं। मंदिर को लेकर एक कथा है कि पहले इस स्थान पर घना जंगल था । आसपास के ग्रामीण तब इस जगल में अपने जानवरों को लेकर चराने जाते थे ।
एक ग्रामीण की गाय प्रतिदिन एक स्थान पर खड़ी होकर अपने आप थन से दुध गिराती थी। चरवाहों ने यह बात गांव के बड़े बुजुर्गो को बताई तो उन्होंने उस स्थान पर खुदाई कराई तो विशाल शिवलिग मिला । ग्रामीणों ने भोले नाथ को वहीं स्थापित कर पूजापाठ शुरू कर दिया । बाद में आगे चलकर जंगल के पास स्थित रेहटी और उससे सटे लहंगपुर गांव में विवाद हुआ था कि यह शिव मंदिर किस गांव की सरहद में है।
जब पंचायतों से फैसला नहीं हुआ तो दोनों गांव के लोगों ने महादेव पर फैसले के लिए छोड़ दिया। इसके बाद ग्रामीणों ने मंदिर का मुख्य गेट बंद कर दिया। फिर जब वह खुला तो लोग चकित रह गए। पावन शिवंलिग उत्तर दिशा में रेहटी गांव की तरफ स्पष्ट रूप से झुका हुआ था।
तब से मंदिर रेहटी गांव में माना जाता है। मंदिर के सामने पूर्व दिशा में रहस्यमयी ऐतिहासिक कुंड भी है जिसमें हमेशा जल बना रहता है। क्षेत्र में मान्यता है कि कुंड में स्नान करने से बुखार और चर्म रोगियों को राहत मिलती है। मंदिर में उमड़ने वाली भीड़ की सुविधा और सुगम दर्शन के लिए पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है। इसके अलावा मंदिर परिसर का सौंदर्यीकरण भी कराया गया है।
सावन माह में उमड़ने वाली भीड़ को देख जौनपुर जिला प्रशासन यहां सुरक्षा व्यवस्था को लेकर अतिरिक्त सर्तकता बरतने के साथ पुलिस बल की तैनाती भी करता है। अफसरों के निर्देश पर नियमित मंदिर व धर्मशाला की साफ-सफाई की जाती है। प्रकाश व पेयजल की व्यवस्था भी रहती है। मंदिर प्रशासन के अलावा क्षेत्रीय व्यापार मंडल व स्थानीय युवा भी कांवरियों व श्रद्धालुओं की सेवा में तत्पर रहते है।