बाबा विश्वनाथ से नाराज होकर महर्षि वेदव्यास ने बसाई थी दूसरी काशी, यहां दर्शन से मिलता है पुण्य,,,।
महाभारत के रचयिता महर्षि वेदव्यास ने काशी से इतर चंदौली के साहूपुरी पड़ाव क्षेत्र में महादेव के अद्भुत शिवलिंग की स्थापना की थी। वहीं इस क्षेत्र को अलग काशी घोषित किया था। काशी प्रवास के दौरान उनके साथ कुछ ऐसा घटित हुआ कि उन्होंने पूरी काशी को ही श्राप दे दिया था।बाद में भगवान गणेश के तपस्या से प्रसन्न होकर इसे श्रापमुक्त किया। आइए जानते हैं पूरी कहानी
मान्यता है कि महाभारत का युद्ध समाप्त होने के बाद महर्षि वेदव्यास काशी भ्रमण को आए। यहां उन्होंने बाबा विश्वनाथ का दर्शन किया। महर्षि व्यास ने स्कन्द पुराण के काशी खंड में लिखी कथाओं के अनुसार सुना था कि काशी में कोई भूखा नहीं सोता है। लेकिन उन्हें दो-तीन दिनों तक भूखे रहना पड़ा।
इस बात से नाराज होकर उन्होंने काशी नगरी को श्राप दिया कि उनका दर्शन-पूजन निष्फल साबित होगा और पांच मील की दूरी पर दूसरी काशी बसाने की ठान ली। इस बात की जानकारी मिलते ही भोलेनाथ ने माता अन्नपूर्णा को वेश बदलकर व्यास जी के पास भेजा। देवी अन्नपूर्णा 56 प्रकार के प्रसाद का भोग लेकर महर्षि वेदव्यास के पास पहुंची। लेकिन महर्षि ने उन्हें पहचान लिया और वापस लौटा दिया।
मंदिर के महंत अशोक कुमार पाण्डेय के अनुसार बाद में भगवान गणेश ने महर्षि वेदव्यास के क्रोध को शांत करने और काशी को श्राप मुक्त कराने के लिए का उपाय पूछने गए। एक दिन भगवान गणेश से प्रसन्न होकर महर्षि वेदव्यास ने उनसे वरदान मांगने को कहा। तब उन्होंने काशी को श्राप से मुक्त करने का वरदान मांग लिया।
इसके बाद उन्होंने काशी को श्राप मुक्त किया और भगवान गणेश को महाभारत रचना को लिखने के लिए तैयार भी किया। साथ ही यह भी कहा कि व्यास मंदिर में दर्शन किए बिना काशी दर्शन का पुण्य नहीं मिलेगा। तभी से इस स्थान पर व्यास मुनि को भोजन बनाकर चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है। सावन में यहभीड़ उमड़ती है।