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क्या आप जानते हैं?कछुओं को मिला गंगा साफ करने का 'टेंडर', नतीजे देख अधिकारी भी हैरत में!,,,।

क्या आप जानते हैं?कछुओं को मिला गंगा साफ करने का 'टेंडर', नतीजे देख अधिकारी भी हैरत में!,,,।

नदियों में गंदगी एक बड़ा मुद्दा है, खासकर गंगा नदी,, क्या आप जानते हैं गंगा नदी को साफ करने के लिए सैकड़ों तरह के इंतजाम सरकार करती है, उन्हीं में से एक इंतजाम है कछुओं को टेंडर देना, चौंकिए मत, ये सच है, कुछए आपके लिए गंगा का पानी नहाने लायक बना रहे हैं, वो भी कई सालों से,,,,,,,।

और इसी क्रम में अगले दो महीनों में उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा नदी में सैकड़ों और कछुए छोड़े जाएंगे, इन सभी कछुओं को छोड़ने का इकलौता उद्देश्य गंगा की सफाई करना है। गंगा को लेकर केंद्र सरकार की योजना है 'नमानी गंगे', इसका मुख्य उद्देश्य गंगा को साफ़ करना है, ये कछुए इसी प्रोजेक्ट के तहत नदी में छोड़े जा रहे हैं।

ये कछुए पानी को साफ कैसे करते हैं?

नमामि गंगे प्रोग्राम के संयोजक हैं राजेश शुक्ला.  ने मीडिया को बताया, "कछुए अपनी खाने की आदत की वजह से गंगा को साफ़ करने में हमारी मदद करते हैं। ये जिंदा रहने के लिए मांस खाते हैं, अधजले शवों और फेंके गए फूल-मालाओं को भी ये खा जाते हैं। कछुओं को छोड़ने के बाद गंगा के पानी की गुणवत्ता की जांच की गई, तो  पाया गया कि इसमें सुधार हुआ है, इसमें बायो-केमिकल ऑक्सीजन लेवल सहित कई जरूरी केमिकल्स के लेवल में सुधार आया है।"

राजेश शुक्ला आगे बताते हैं,

"कछुओं को नदी में डालने के बाद कई जगहों पर जांच की गई जिसमें पाया गया कि पानी के पीएच लेवल में सुधार आया है। और इन जगहों पर गंगा का पानी नहाने लायक बना है, हालांकि सफाई का ये तरीका एक लंबी प्रक्रिया है। इसलिए कुछ समय और रिसर्च के बाद ही बता पाएंगे की कछुए गंगा सफाई में कितनी अहम् भूमिका निभाते हैं। और ये पानी को किस हद तक साफ़ कर देते हैं, ये समय 10 साल से 15 साल तक का भी हो सकता है।" 40 हजार कछुओं को अब तक गंगा में छोड़ा जा चुका है | 

कब से चल रहा है ये तरीका?

वाराणसी में 1980 के दशक में बना था टर्टल रिहैबिलिटेशन सेंटर। ये सेंटर कछुओं के संरक्षण, अनुसंधान और उनको बचाने के बारे में जागरूकता पैदा करता है, ये संस्थान गंगा एक्शन प्लान के तहत 40 हजार कछुओं को अब तक गंगा में छोड़ चुका है, पहले चरण में लगभग 28 हजार कछुए छोड़े गए थे।

वाइल्ड लाइफ इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया के साथ काम कर रहे आशीष पांडा बताते हैं कि,
"2017 से हमने लगभग 5,000 कछुए गंगा में छोड़े हैं. इस साल भी 1,000 कछुए छोड़े जाएंगे. इसका उद्देश्य गंगा की सफाई पर ध्यान देना है."

कहां से आते हैं इतने सारे कछुए?

इस काम में वन एवं वन्यजीव विभाग की टीम पूरी मदद करती है। चंबल क्षेत्र के तटीय इलाकों से ये टीमें कछुओं के अंडे लेकर आती हैं, इन अंडो की 70 दिनों तक निगरानी की जाती है। इसके बाद इन अंडों को एक लकड़ी के बक्से में रखा जाता है, फिर बक्से को जमीन के अंदर एक पानी के गड्ढे में दबा दिया जाता है, इसके ऊपर ईंटें रख दी जाती हैं। जून और जुलाई के बीच 27 से 30 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर अंडे सेने का काम पूरा हो जाता है। और कुछए अण्डों से बाहर निकल आते हैं। इन कछुओं को नदी में छोड़ने से पहले दो साल तक आर्टिफिशियल तालाब में रखा जाता है। और इनकी निगरानी की जाती है, जब ये अपने काम में यानी मांस और गंदगी हटाने में माहिर हो जाते हैं तो इन्हें गंगा में छोड़ दिया जाता है।