त्रिलोचन महादेव के कुंड में न पानी भरा जाता है..न है कोई स्रोत, भगवान शिव ने दिया था ये संकेत,,,।
वैसे भगवान शिव के हर मंदिर की अपनी कुछ न कुछ कहानी होती है, लेकिन बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी से सटे जौनपुर जिले में स्थित त्रिलोचन महादेव की कहानी बड़ी ही रोचक है। यहां के कुंड का पानी कभी सूखता नहीं है। आश्चर्य की बात तो यह कि इस कुंड में न तो कभी पानी भरा जाता है और न ही पानी आने का कहीं से रास्ता है, बावजूद इसके कुंड में जेठ की दुपहरी में भी पानी भरा रहता है।
जौनपुर शहर से महज 22 किमी की दूरी पर वाराणसी-सुल्तानपुर हाइवे के किनारे जलालपुर से थोड़ा आगे स्थित इस शिव मंदिर से लोगों की आस्था काफी प्रगाढ़ है। यहां के पुजारी मुरली गिरी बताते हैं कि शिवलिंग के बारे में कहा जाता है कि यहां पर शिवलिंग कहीं से लाया नहीं गया, बल्कि स्वयं महादेव सात पाताल को भेदकर यहां विराजमान हुए हैं। स्कंद पुराण में इस शिवलिंग का उल्लेख है। मंदिर रहस्यमयी गाथाओं को समेटे हुए है। मंदिर के बाहर स्थित कुंड का पानी कभी सूखता नहीं है।स्वयं भगवान शिव ने दिया था यह संकेत
पुजारी के अनुसार,मंदिर को लेकर समीपवर्ती दो गांवों रेहटी और डिंगुरपुर में इस बात को लेकर विवाद था कि यह मंदिर किस गांव की में है। कई पंचायतें और तर्क-वितर्क हुए लेकिन तय नहीं हो सका। तब दोनों गांवों के बुज़ुर्गो ने फैसला किया कि यह फैसला स्वयं भगवान भोलेनाथ करेंगे। उन्होंने मंदिर के दरवाजे में ताला जड़ दिया और घर चले गए। ताला दोनों पक्ष की ओर से जड़ा गया।
अगले दिन जब लोग मंदिर पहुंचे तो शिवलिंग स्पष्ट रूप से उत्तर दिशा में रेहटी ग्राम की तरफ झुका हुआ था जिसे देख लोग आश्चर्यचकित हो गए। तभी से शिव मंदिर को रेहटी गांव में माना जाता है। यहां शिवलिंग पर पूरा चेहरा, आंख, मुंह, नाक आदि बना हुआ है। आज भी साफ तौर पर देखा जा सकता है।
रहस्यमयी है मंदिर के पूरब का कुंड
त्रिलोचन शिव मंदिर के सामने पूरब दिशा में रहस्यमय ऐतिहासिक कुंड है। जिसमें हमेशा जल रहता है। इस कुंड का संपर्क अंदर से सई नदी से बताया जाता है जो करीब नौ किमी दूर है। इस कुंड में कहीं से पानी आने का स्रोत नहीं है बावजूद इसके पानी भरा रहता है। कभी सूखता नहीं है।