यूपी : कौवे ने हड्डी नहीं फेंकी होती तो बन जाता काशी, जानें भोलेनाथ के इस मंदिर की कहानी,,,।
सावन के महीने में देश – दुनिया के तमाम शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं तांता लग जाता है। कानपुर की बात करें तो यहां पर एक दिव्य मंदिर हैं जिसे द्वितीय काशी के नाम से भी जाना जाता है। यह गंगा नदी के किनारे जाजमऊ में मौजूद है, इस मंदिर को प्रचीन सिद्धनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। सावन का महीना लगते ही यहां पर हजारों श्रद्धालु देश के कोने-कोने से यहां आकर भोलेनाथ के दर्शन करते हैं। मान्यता है कि यहां पर अभिषेक करने के बाद जो भी मन्नत मांगी जाती है वह जरूर पूरी होती है।
मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार यहां पर त्रेतायुग के समय राजा ययाति का महल हुआ करता था, उनके पास 1000 गाय थीं। वह इन सभी गायों में से सिर्फ एक ही गाय का दूथ पिया करते थे, उस गाय की विशेषता यह थी कि उसके पांच थन थे। जब वह अपनी गायों को चरने के लिए सुबह छोड़ देते थे तो एक गाय जंगल में एक पत्थर पर अपना दूध गिरा देती थी, इस बात का पता चलने के बाद राजा ने उस जगह पर खुद जाने का फैसला किया। राजा ने उस टीले पर खुदाई करवाई जहां पर गाय अपना दूध गिरा दिया करती थी तो उन्हें एक शिवलिंग दिखाई दिया, इस घटना के बाद राजा ने वहां पर एक भव्य मंदिर बनवाया और शिवलिंग को स्थापित किया था।
ऐसे नहीं बन पाया काशी
इस मंदिर को लेकर एक और कथा फेमस है कि मंदिर की स्थापना के बाद राजा को एक दिन सपना आया कि यहां पर अगर 100 यज्ञ पूरे हो जाएं तो यह जगह काशी बन जाएगी। राजा ने सपने का पालन करते हुए यहां पर भव्य तैयारियां करवाई। 99 यज्ञ पूरे हो चुके थे लेकिन, जैसे ही 100वां पूरा होने वाला था एक कौवे ने यज्ञ कुंड में एक हड्डी गिरा दी थी, जिसकी वजह से वह यज्ञ भंग हो गया था। बस इसी एक घटना की वजह से यह स्थान काशी नहीं बन पाया था, हालांकि लोग अभी भी इस जगह को द्वितीय काशी के नाम से जानते हैं।
संतान प्राप्ति की मनोकामना होती है पूरी
मंदिर से जुड़ी कहानियों के अनुसार राजा की तपस्या से प्रसन्न होकर स्वयं भोलेनाथ ने उन्हें दर्शन दिए थे, राजा कि इस सिद्धि की वजह से ही इस मंदिर का नाम सिद्धनाथ पड़ा है। मंदिर के पुजारी मुन्नी लाल पांडेय ने बताया कि सावन में हर दिन इस मंदिर में सैकड़ों भक्त आते हैं, लेकिन सावन के दिन यहां पर हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं, उन्होंने कहा कि सावन के आखिरी दिन यहां पर विशेष मेले का आयोजन किया जाता है, मान्यता है कि जिनके यहां पर संतान नहीं होती वह अगर बाबा सिद्धनाथ की पूजा अर्चना करें तो उनकी मुराद जरूर पूरी होती है।