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तानाशाही झेलने की मजबूरी :: साढ़े तीन महीने बाद भी नहीं मिल रही NCERT की किताब, 1175 में खरीद रहे मात्र 38 रुपये की बुक,,,।

तानाशाही झेलने की मजबूरी :: साढ़े तीन महीने बाद भी नहीं मिल रही NCERT की किताब, 1175 में खरीद रहे मात्र 38 रुपये की बुक,,,।

प्रयागराज : यूपी बोर्ड से जुड़े प्रदेश के 27 हजार अधिक स्कूलों में पढ़ने वाले एक करोड़ से अधिक छात्र-छात्राओं को एनसीईआरटी की सस्ती किताबें उपलब्ध नहीं हो सकी हैं। एक अप्रैल को 2023-24 सत्र शुरू होने के साढ़े तीन महीने बाद भी बाजार में 'सस्ती' किताबें नहीं आने के कारण विद्यार्थियों को निजी प्रकाशकों की कई गुना महंगी किताबें खरीदनी पड़ी हैं। 

उदाहरण के तौर पर कक्षा 12 की रसायन विज्ञान की दो किताबों की कीमत 38 रुपये है लेकिन दोनों किताबों को एकसाथ छापकर निजी प्रकाशक बाजार में 1175 रुपये में बेच रहे हैं। इसी प्रकार 52 रुपये में मिलने वाली भौतिक विज्ञान की दो किताबें निजी प्रकाशक 1060 रुपये में बेच रहे हैं। अंग्रेजी की 40 रुपये में बिकने वाली दो किताबें 177 रुपये में मिल रही हैं।

यूनिवर्सिटी रोड पर शर्मा बुक स्टोर के सत्यम का कहना है कि बाजार में अभी यूपी बोर्ड की अधिकृत एनसीईआरटी किताबें उपलब्ध नहीं हो सकी हैं। बच्चे निजी प्रकाशकों की किताबें ही खरीद रहे हैं। 

गौरतलब है कि यूपी बोर्ड ने 36 विषयों की अधिकृत 70 एनसीईआरटी और 12 नॉन-एनसीईआरटी किताबों के प्रकाशन के लिए 20 जून तक टेंडर आमंत्रित किए थे। चयनित प्रकाशकों को प्रकाशन की जिम्मेदारी दी जा चुकी है लेकिन किताबें छप कर बाजार में नहीं आ सकीं।

पिछले साल भी तीन महीने बाद आई थी किताबें

2022-23 सत्र में भी तीन महीने बाद छह जुलाई को यूपी बोर्ड की अधिकृत सस्ती किताबें बाजार में उपलब्ध हो सकी थीं। हालांकि तब तक अधिकांश बच्चों ने बाजार से निजी प्रकाशकों की महंगी किताबें खरीद ली थीं। यूपी बोर्ड के अधिकारियों ने स्कूलों में अधिकृत किताबों से ही पढ़ाने के निर्देश भी दिए लेकिन उसका कोई खास असर नहीं हुआ। अधिकारियों ने किताब की दुकानों पर छापेमारी करते हुए निजी प्रकाशकों के खिलाफ एफआईआर तक दर्ज कराई थी। लेकिन इस साल फिर गरीब बच्चों को सस्ती किताबें उपलब्ध कराने की सारी कवायद बेमतलब हो गई है।

पूर्व एमएलसी और माध्यमिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष, सुरेश कुमार त्रिपाठी ने कहा कि यूपी बोर्ड के स्कूलों में अधिकांश निचले और गरीब तबके के बच्चे पढ़ते हैं। आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं होने के बावजूद अधिकारियों की लापरवाही के कारण अभिभावकों को हर साल निजी प्रकाशकों की कई गुना महंगी किताबें खरीदनी पड़ती हैं। यह बच्चों के साथ साजिश है।