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संपादकीय :: कश्मीर, धारा 370 और दीन दयाल उपाध्याय. एक ऐसी महान शख्सियत जिसका सपना कितना पूरा हुआ?,आइए देखे,,,।

संपादकीय :: कश्मीर, धारा 370 और दीन दयाल उपाध्याय. एक ऐसी महान शख्सियत जिसका सपना कितना पूरा हुआ?,आइए देखे,,,।

आज हम अपने इस लेख के द्वारा आप सबको एक ऐसी शख्सियत के बारे में बताने जा रहे हैं, जो किसी नाम का मोहताज नहीं है, उनके कार्य ही बहुत है, उनकी पहचान के लिए जी हां उनका नाम है पंडित दीनदयाल उपाध्याय,,,,,। आज उनकी 107वीं जयंती है जयंती विशेष पर संपादक की तरफ से श्रद्धांजलि के रूप में उनके प्रति एक छोटा सा प्रयास,,,,,,,।

वे गांव, खेत, किसान, गरीब की तरक्की के बारे में सोचते थे. पहले दिन से उनका मानना था कि भारत की तरक्की तभी सही दिशा में मानी जाएगी, जब अंतिम पायदान पर सुदूर गांव में बैठा व्यक्ति खुश रहेगा.अखंड भारत का सपना उन्होंने बुना. एक देश-एक विधान का नारा उन्होंने ही दिया. उन्होंने उस समय पहाड़ जैसी कांग्रेस के सामने राजनीतिक विकल्प बनाने की सोची. उन पंडित दीन दयाल उपाध्याय की आज, 25 सितंबर को 107वीं जयंती है।

केंद्र और देश के अनेक राज्यों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी उनके बनाए आदर्शों पर चलने का प्रयास कर रही है. भारत सरकार की अनेक योजनाओं में उनकी छाप स्पष्ट देखी जा सकती है. जम्मू-कश्मीर से धारा 370 का हटना उनके सपनों का महत्वपूर्ण हिस्सा था. वे अंत्योदय और एकात्म मानवतावाद के प्रबल समर्थक थे. जब केंद्र सरकार ने दीन दयाल उपाध्याय अंत्योदय योजना की शुरुआत की तो यह उनके प्रति श्रद्धांजलि ही कही जाएगी।

कोविड काल में अचानक आए संकट के बाद देश की एक बड़ी आबादी को मुफ़्त राशन, किसान सम्मान राशि, उज्ज्वला योजना, आयुष्मान भारत, स्वनिधि योजना, गांव-गांव, घर-घर शौचालय जैसी योजनाओं का सपना पंडित उपाध्याय देखा करते थे, जिसे उनकी स्थापित पार्टी अब साकार कर रही है. ये सभी उदाहरण इस बात के प्रमाण हैं कि भारतीय जनता पार्टी अभी भी जड़ों से जुड़ी हुई है. जो लोग कहते हैं कि यह मोदी की पार्टी है, गलत है. मोदी सर्वोच्च नेता हैं, यह निर्विवाद सच है. पर, पार्टी आज भी दीन डायल उपाध्याय, श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बनाए-बताए रास्ते पर ही चलती हुई दिखाई दे रही है।

रोजगार से समर्थक थे पं. दीन दयाल उपाध्याय

बावजूद इसके केंद्र सरकार को अभी बहुत दूरी तय करना है, उनके सपनों को पूरा करने के लिए. खेत-किसान जब तक मजबूत नहीं होगा, पंडित दीन दयाल उपाध्याय का सपना पूरा नहीं होगा. जब किसान को सम्मान राशि न देना पड़े, फ्री राशन की जरूरत न पड़े, मतलब सुदूर गांव में बैठे किसान की फसल का वाजिब मूल्य उसे मिल सके, तब अंत्योदय का सपना पूरा होगा, तभी दीन दयाल उपाध्याय का सपना पूरा होगा। 

वे औद्योगिकीकरण के विरोधी थे. आज होते तो शायद विरोध नहीं करते, लेकिन वे इस बात का समर्थन जरूर करते कि गांव-गांव तक सड़क, बिजली, पानी की तरह ही घर-घर तक रोजगार पहुंचे. आय का ठोस जरिया हर घर के पास हो. वह चाहे खेती की उपज से हो या जिसके पास जमीन नहीं है, उसे घर के पास लगी फैक्ट्री में रोजगार के माध्यम से. केंद्र सरकार की योजनाएं उस दिशा में बढ़ी तो हैं लेकिन अभी लंबी दूरी तय करना होगा. देश आगे बढ़ चुका है। समस्याएं भी उसी तरह से बढ़ी हैं. अंतिम पायदान पर बैठे व्यक्ति के लिए लगातार काम होगा, तब जाकर कुछ बरस बाद कहीं उपाध्याय के सपने पूरे होंगे।

सरकार को इस दिशा में करना होगा काम

सरकार को अब इस दिशा में काम करना होगा कि मंडियों की लूट-खसोट बंद हो। किसान की ब्लैकमेलिंग बंद हो. इस वजह से कई बार किसान को उसकी फसल की लागत निकलना तो दूर, घाटा उठाना पड़ रहा है। जिस तरीके से अमूल जैसी कंपनी ने सहकारिता आंदोलन के जरिए दूध के जरिए किसानों को जोड़ा है, उनकी आर्थिक स्थित सही की है. ठीक उसी तरीके से बाकी सभी नगदी फसलों की खरीद हो, किसान की मंडी तक पहुंचने की लागत बचेगी, समय बचेगा तो वह ज्यादा मेहनत से खेती में समय देकर अपने लिए, देश के लिए खाद्यान्न उत्पादन में ध्यान दे पाएगा.सिस्टम ऐसा भी बनाना होगा कि किसान अपने ही खेत पर ठगी का शिकार न हो. भुगतान का पारदर्शी सिस्टम बनाने की भी जरूरत है. ऐसा सिस्टम न होने की वजह से ही किसान अपनी फसल व्यापारियों को प्रायः कम दाम में बेच देता है. गन्ने की फसल का भुगतान आज भी किसानों के लिए एक बड़ी समस्या है. कई बार साल-साल भर बाद भुगतान हो रहा है. आज जब गांव-गांव तक सड़कों का जाल बिछ गया है. तो यह काम आसान हो जाता है।

गांव भी देखा और गरीबी भी

ऐसा होने के बाद किसान को न ही सम्मान राशि की जरूरत पड़ेगी और न ही फ्री राशन की. दीन दयाल उपाध्याय ने गांव भी देखा था और गरीबी भी. वे खुद ग्रामीण परिवेश में पैदा हुए, पले-बढ़े और देश-दुनिया घूमते हुए भी गांव उनके सपने में आते. उन्हें सच्चाई पता थी. उस जमाने में गांवों का आर्थिक ढांचा ऐसा था कि नकदी की जरूरत कम से कम पड़ती और गांव का अमीर-गरीब मिलकर अपनी जरूरतें पूरी कर लेते. उनका आर्थिक दर्शन मौजूदा केंद्र सरकार की नीतियों में स्पष्ट दिखता है लेकिन उसे और ताकत देने की जरूरत अभी है. तभी पंडित दीन दयाल उपाध्याय के सपने पूरे करने की दिशा में सही कदम माना जाएगा।