संपादकीय, विश्व यौन स्वास्थ्य दिवस विशेष लेख: यौन रोग की चपेट में हर चौथा आदमी, खुल कर बात का माहौल बनाना जरूरी,,,।
(संपादक की कलम से),,विश्व यौन स्वास्थ्य दिवस पर विशेष लेख :: आधी रात का समय और दिल्ली का एक सरकारी अस्पताल। आपातकालीन कक्ष में लगभग 28 साल का एक बेहोश मरीज स्ट्रेचर पर ज़ल्दी से ले आया जाता है। उसके चिंतित परिवारजन बताते हैं कि उसने टॉयलेट क्लीनर पीकर अपनी जान देने की कोशिश की। हमारी टीम तुरंत हरकत में आती है और सौभाग्यवश उसकी स्थिति को कण्ट्रोल में लाया जाता है। उसके होश में आने के बाद हमें पता चलता है कि उस युवा रिक्शा-चालक ने खुद को मारने की कोशिश बस इसलिए की थी क्योंकि वह स्तंभन दोष और शीघ्रपतन से पीड़ित था और इसका उसकी शादी पर काफी बुरा असर पड़ रहा था।
हताशा में वह रोड किनारे बैठे कई नीम-हकीमों के चक्कर काट चूका था और लगभग ₹1 लाख खर्च करने के बाद भी उसे कोई समाधान नहीं मिला था। यह उस देश में जहाँ एक जेनेरिक वियाग्रा गोली की कीमत ₹25 से भी कम है। और यह तो राष्ट्रीय राजधानी की बात है, देश के दूरवर्ती इलाकों में क्या होता है वह तो सोच के भी परे है।
4 में से 1 पुरुष हैं यौन रोग से पीड़ित
विश्व स्तर पर लगभग 4 में से 1 पुरुष कम से कम किसी न किसी रूप में यौन रोग से पीड़ित हैं। महिलाओं में भी ये संख्या लगभग इतनी ही है। इन विकृतियों का इलाज न हो पाने का सबसे बड़ा कारण इस विषय से जुड़ी वर्जनाएं हैं। हमारे समाज में इस बारे में एक स्वस्थ संवाद की ज़रूरत तो है पर सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव में दशकों लग जाते हैं और इसे जल्दबाज़ी में नहीं लाया जा सकता।
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन जैसी सरकारी स्कीम्स ने क्रमशः मातृ व शिशु मृत्यु दर और यौन संचारित रोगों (STDs) से संबंधित उपचारों की पहुंच बढ़ाने में मदद की है। पर नियमित यौन विकारों जो एक-चौथाई से ज़्यादा जनसंख्या को प्रभावित करते हैं, उन पर ध्यान नहीं दिया गया है।
ग्रामीण भारत में डॉक्टर-मरीज़ अनुपात समस्या का बेहद खराब होना इस परेशानी का सिर्फ एक पहलू है। इस मुद्दे पर बातचीत में संकोच होना एक बड़ी समस्या है। छोटे शहरों और गाँवों में जहाँ सब एक-दूसरे को जानते हों, वहाँ इस वजह से समस्या और जटिल हो जाती है।
बिहार में हमारे और हमारे सहयोगियों द्वारा किए जा रहे एक अध्ययन के आंकड़ों से पता चलता है कि इस प्रकार के यौन रोगों के लिए डॉक्टर से परामर्श लेने वाले रोगियों की संख्या लगभग नगण्य है। मरीज़ डॉक्टर तक पहुँचते ही नहीं हैं।
जानकारी के अभाव और लोगों का डॉक्टर के पास जाने में संकोच का फायदा नीम-हकीम और झोलाछाप डॉक्टर उठाते हैं। ये अपनी दुकान एक जगह पर नहीं लगाते और एक स्थान पर बस सप्ताह में एक से दो बार ही बैठते हैं। स्थानीय समुदाय से उनके नहीं होने के चलते मरीज़ों की झिझक उतनी नहीं रहती और वे ऐसे नीम हकीमों से खुल कर बात कर पाते हैं।
देश में कम से कम 10 लाख झोलाछाप डॉक्टर
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अनुसार देश में कम से कम 10 लाख झोलाछाप डॉक्टर काम कर रहे हैं जिनमें से कई यौन रोग ठीक करने का दावा करते हैं। वे आमतौर पर मरीज़ों को खुद से तैयार की गयी दवाएं देते हैं जो काम तो नहीं ही करती हैं और कई मामलों में रोगियों के लिए घातक भी साबित हो जाती हैं। इस तरह की यौन रोगों के इलाज के लिए फार्मेसी पर उपलब्ध बिना डॉक्टर की पर्ची के मिलने वाली दवाओं का भी यही सच है।
2022 में किये गए नीति आयोग के एक अध्ययन से पता चला है कि भारत में लोगों के रक्त में सीसे (लेड) का औसत स्तर 4.9 μg/dl है। हिंदी पट्टी में स्थिति और भी चिंतनीय है। यह स्तर बिहार में 10.4, उत्तर प्रदेश में 8.7 और मध्य प्रदेश में 8.3 तक जाती है। तुलना के लिए विश्व स्तर पर ये संख्या औसतन 0.8 से 3.2 μg/dL के बीच में रहती है और 3.5 μg/dL से ऊपर होने पर अमेरिका के सीडीसी द्वारा इसे चिकत्सकीय हस्तक्षेप की कैटेगरी में रखा जाता है। नीति आयोग द्वारा चिन्हित सीसा विषाक्तता के प्राथमिक कारकों में बिना पर्ची प्राप्त की गयी और नीम-हकीमों द्वारा दी जा रही खुद से तैयार की गयी दवाएं शामिल हैं जिनके परिणामस्वरूप देश में सालाना अनुमानित 2.3 लाख मौतें होती हैं।
इस परेशानी को हल करने के लिए हम रोहिणी नीलेकणी की सुझाई समाज, सरकार और बाज़ार के बीच की परस्परता वाले फ्रेमवर्क पर आधारित एक दृष्टिकोण की अनुशंसा करते हैं। यौन रोगों के हाई डिजीज बर्डन को देखते हुए हमारे राष्ट्रीय और राजकीय स्वास्थ्य कार्यक्रमों में इस पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। इसे प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों के माध्यम से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में शामिल किया जा सकता है। लेकिन यह तभी हो पायेगा जब इसके लिए सरकार गॉंवों में तैनात अपने स्वास्थ्यकर्मियों को इससे जुड़ा हुआ एक विशेष प्रशिक्षण दे।
यौन चिकित्सा में स्पेसिअलिटी को मान्यता नहीं
वर्तमान में यौन चिकित्सा को भारत में एक अलग स्पेसिअलिटी के रूप में मान्यता भी नहीं दी गई है और इससे जुडी स्पेशलाइजेशन एंड्रोलॉजी, यूरोलॉजी, डर्मेटोलॉजी और साइकाइट्री के 4 विभिन्न चिकित्सा डिपार्टमेंट्स में बिखरी हुई है। ज़रूरी है कि भारत में इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर सेक्सुअल मेडिसिन द्वारा विभिन्न सर्टिफिकेट कोर्सेज के तर्ज़ पर नेशनल मेडिकल कमीशन MBBS के उपरांत यौन चिकित्सा में 6 महीने या एक साल की अवधि के एक फ़ेलोशिप प्रोग्राम का खाका तैयार कर उसे मान्यता दे।
फोन पर डॉक्टर से परामर्श रोगी को गोपनीयता प्रदान कर इन विकारों से जुड़ी वर्जना और शर्म को दूर करने में काफी हद तक सफल साबित हो सकता है। टेलीकंसल्टेशन और ई-फार्मेसी सेवाओं पर कड़े नियामक कानून बनाने से ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच पर उसका उल्टा असर पड़ेगा। इस संदर्भ में चाहिए कि सरकार इस क्षेत्र में ऐसी निजी पहलों को रोकने की बजाय बढ़ावा दे।
एक बार जब चिकित्सकीय पहुंच बढ़ाने की पहल ने परिणाम दिखाना शुरू कर दिया हो तब झोलाछाप डॉक्टरों और नीम-हकीमों पर कार्रवाई भी होनी चाहिए, क्योंकि वे लोगों की असुरक्षा की भावना का फायदा उठा कर उन्हें अंततः हानि पहुँचाते हैं।
इन सबके अलावा इस समस्या का दीर्घकालिक समाधान यौन स्वास्थ्य पर जनमानस में गुणवत्तापूर्ण जानकारी की पहुंच को सक्षम करना है। स्कूलों में यौन स्वास्थ्य से जुड़ी बेसिक जानकारी को शामिल करने से इसमें मदद मिल सकती है। हाल ही में रिलीज़ हुई ओएमजी 2 जैसी फिल्में दिखाती हैं कि मास मीडिया और फिल्मों के माध्यम से यौन स्वास्थ्य के जागरूकता की दिशा में काफी मदद मिल सकती है। ग्रामीण भारत को शर्मिंदगी से घिरी इस खामोश महामारी के समाधान की जरूरत है और अब समय आ गया है कि इस पर ठोस कदम उठायें जाएँ।
हमारे मीडिया नेटवर्क केसरी न्यूज़ 24 के चीफ एडिटर द्वारा विश्व यौन स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर कुछ चुनिंदा डॉक्टरों द्वारा बातचीत के आधार पर की गई संग्रहित लेख की प्रस्तुति,,, ए. के.केसरी ।।