यूपी बिहार बॉर्डर :: अंदर बिहार पुलिस तो बाहर यूपी पुलिस होती है तैनात, द्वापर युग के इस मंदिर की ये है खासियत,,,।
यूपी और बिहार की सीमा पर इस शिव मंदिर की स्थापना द्वापर युग में बाणासुर ने की थी। यहां यूपी-बिहार से ही नहीं, देश के अन्य प्रांतों के अलावा पड़ोसी राष्ट्र नेपाल से भी श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। इस मंदिर की सुरक्षा आज भी दोनों प्रदेशों की पुलिस संभालती है।
जी हां, हम बात कर रहे हैं देवरिया जिले के भाटपारानी तहसील मुख्यालय से करीब 13 किमी दूरी पर स्थित बाबा हंसनाथ मंदिर सोहगराधाम की। जिले के चनुकी-खरवनिया मार्ग से सटे यह मंदिर यूं तो बिहार प्रांत के सीवान जिले के गुठनी थाना क्षेत्र में पड़ता है लेकिन इसके पश्चिम तरफ भाटपाररानी का महुजा और उत्तर की तरफ अमृतचक गांव है।
मंदिर से सटी सड़क भी यूपी में पड़ती है। महाशिवरात्रि पर यहां भव्य मेला लगता है तो सावन में दूर-दूर से लाखों श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। श्रद्धालुओं की भीड़ को देखते हुए शिवरात्रि और श्रावण मेले के दौरान यहां भारी संख्या में पुलिसकर्मियों को लगाना पड़ता है। मंदिर के गर्भगृह समेत अंदर की सुरक्षा जहां बिहार पुलिस संभालती है, वहीं बाहर यूपी पुलिस मुस्तैद रहती है। यूपी पुलिस महुजा चेकपोस्ट के साथ ही मंदिर से सटे चनुकी-खरवनिया मार्ग पर सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालती है।
संयुक्त बैठक में दोनों प्रांत की पुलिस बनाती है रणनीति
महत्वपूर्ण आयोजनों से पहले यहां बिहार और यूपी पुलिस की संयुक्त बैठक होती है। इसमें सुरक्षा की रणनीति बनाई जाती है। पीस कमेटी की बैठक में भी यूपी की भाटपाररानी और बिहार की गुठनी पुलिस मौजूद रहती है। यही नहीं इस दौरान दोनों प्रांतों के लोगों को भी बुलाया जाता है। भाटपाररानी के थानेदार टीजे सिंह बताते हैं कि शिवरात्रि और श्रावणी मेले के दौरान मंदिर की सुरक्षा में करीब पांच सौ पुलिसकर्मी लगाए जाते हैं। इसमें यूपी से भाटपाररानी पुलिस की ड्यूटी लगती है जबकि अन्य जवान बिहार पुलिस के होते हैं।
यह है मंदिर से जुड़ी मान्यता
बाबा हंसनाथ मंदिर में पूजा अर्चना की जिम्मेदारी महंत अरविंद गिरी, कृष्णानंद गिरी, सत्येंद्र गिरी व अरुण कुमार गिरी संभालते हैं। मंदिर में करीब 25 फीट की ऊंचाई पर स्थापित शिवलिंग साढ़े आठ फीट का है। मंदिर का शिवलिंग अष्टधातु से बना है। मंदिर से जुड़ी मान्यता के बारे में महंत अरविंद गिरी बताते हैं कि इसकी स्थापना द्वापर युग में बाणासुर ने अपनी बेटी उषा के लिए की थी। उषा सोहगरा मंदिर में ही भगवान शिव की अराधना करती थी।
कालांतर में मंदिर की हालत काफी जर्जर हो गई थी। कहा जाता है कि काशी नरेश राजा हंस ध्वज ने संतान के लिए यहां आकर मन्नतें मांगी जिसके बाद उनकी मुराद पूरी हो गई। जिससे प्रसन्न होकर राजा हंसध्वज ने इस विशाल मंदिर का पुर्ननिर्माण कराया। इसके बाद से मंदिर का नाम बाबा हंसनाथ भी पड़ गया।
नेपाल देश से भी आते हैं श्रद्धालु
मंदिर के पुजारी सत्येंद्र गिरी कहते हैं कि मंदिर के बारे में लोगों की ऐसी आस्था है कि यहां प्रसाद चढ़ाकर पूजा-अर्चना करने से हर मन्नत पूरी होती है। यह मंदिर सच्चे मन से पूजा-अर्चन पर मनचाहे पति और संतान प्राप्ति के लिए विख्यात है। इस वजह से यहां सबसे ज्यादा महिलाएं और युवतियां पूजा अर्चना करने के लिए आती हैं। संतान प्राप्ति की कामना लेकर यहां हर साल नेपाल से भी हजारों श्रद्धालु आते हैं। साफ-सफाई के बाद मंदिर में प्रतिदिन शाम को भव्य आरती होती है।
सावन में आते हैं कांवड़िये
बाबा हंसनाथ मंदिर में श्रावण मास में बड़ी संख्या में कांवड़िये भी जलाभिषेक के लिए आते हैं। यहां आने वाले बिहार के कांवड़िये पांच मंदिरा व ग्यासपुर में सरयू का जल भरते हैं। वे यहां से करीब 30 किलोमीटर की दूरी तय कर पहुंचते है। वहीं बलिया, सिकंदरपुर और भागलपुर के नजदीक घाटों से सरयू का जल भर कर यूपी के कांवड़िये 60 से 65 किमी दूरी तय करके आते हैं।