धूमधाम से मनाई गई ललही छठ की पूजा, फल फूल और कपड़ों से सजे थाल के साथ नदी किनारे पहुंचीं महिलाएं,,,।
मिर्जापुर में नगर सहित ग्रामीण क्षेत्रों में पुत्रों की मंगल कामना के लिए मंगलवार को ललही छठ महारानी का विधिवत पूजन अर्चन किया गया। फल फूल और कपड़ों से सजे थाल के साथ बाजे गाजे के बीच तालाब अथवा नदियों के किनारे पहुंची महिलाओं ने कुंड बनाकर ललही माता का दूध, दही, महुआ व तिन्नी चावल का भोग लगाया।
इस दौरान महिलाओं ने ललई छठ महारानी की कथा एक दूसरे को सुनाया और सुना। माता के पूजन के बाद महिलाओं ने प्रसाद वितरण किया।
इसे हलषष्ठी, ललई छठ और ललही छठ के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व बलराम जी को समर्पित है।
मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। ऐसा माना जाता है कि द्वापर युग में श्रीकृष्ण के जन्म से पहले शेषनाग ने बलराम के रूप में जन्म लिया था। हरछठ का व्रत संतान की दीर्घ आयु और उनकी सम्पन्नता के लिए किया जाता है। इस दिन माताएं संतान की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती हैं और पूजा करती हैं। इस व्रत को करने से पुत्र पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाते हैं।
हलछठ या ललही छठ पूजा विधि
हलछठ वाले दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें और व्रत का संकल्प लें।
इसके बाद साफ कपड़े पहनकर गोबर ले आएं।
फिर साफ जगह पर गोबर से पुताई कर तालाब बनाएं।
इस तालाब में झरबेरी, ताश और पलाश की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई हरछठ को गाड़ दें।
अंत में विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करें।
पूजा के लिए सात तरह के अनाज जैसे गेहूं, जौ, अरहर, मक्का, मूंग और धान चढ़ाएं इसके बाद हरी कजरियां, धूल के साथ भुने हुए चने चढ़ाएं।
आभूषण और हल्दी से रंगा हुआ कपड़ा भी चढ़ाएं।
फिर भैंस के दूध से बने मक्खन से हवन करें। अंत में हरछठ की कथा सुनें।