वाराणसी :: नाटी इमली के प्रसिद्ध भरत मिलाप से 226 साल पुराना है राजपरिवार का रिश्ता,,,।
वाराणसी :: श्रीचित्रकूट रामलीला समिति की ओर से आयोजित होने वाली रामलीला के सबसे चर्चित प्रसंग 'भरत मिलाप से काशी राजपरिवार के रिश्ते को इस वर्ष 25 अक्तूबर को 226 साल पूरे हो जाएंगे। वर्ष 1796 में महाराजा उदित नारायण सिंह ने भरत मिलाप की लीला में प्रतिवर्ष आने की परंपरा की नींव डाली थी। 226वें वर्ष में काशीराज के प्रतिनिधि के रूप में कुंवर अनंतनारायण सिंह उपस्थित होंगे।
काशिराज उदितनारायण सिंह सन-1814 तक राजगद्दी पर रहे। उनके बाद से काशी की राजगद्दी पर बैठने वाले सभी राजाओं ने इस परंपरा का निर्वाह किया। इस परंपरा को सर्वाधिक गरिमा पूर्व काशीनरेश डॉ. विभूति नारायण सिंह के दौर में मिली। काशीवासियों के बीच महादेव तुल्य सम्माननीय विभूति नारायण सिंह ने जिस निष्ठा और आस्था के साथ इस लीला में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई थी, उसे देख कर दूर-दराज से आने वाले लोगों को भ्रम हो जाता था कि नाटी इमली के भरत मिलाप की लीला रामनगर की रामलीला से जुड़ी है।
श्रीचित्रकूट रामलीला समिति के व्यवस्थापक पं. मुकुंद उपाध्याय के अनुसार वर्ष 2000 में डॉ. विभूतिनारायण सिंह अंतिम बार इस लीला में आए। उस वर्ष रामलीला शुरू होने से पूर्व महाराज बहुत अधिक बीमार पड़ गए थे। चिकित्सकों ने उन्हें चलने-फिरने से भी मना कर दिया था लेकिन भरत मिलाप के समय महाराज अपने हाथी पर सवार होकर शाही अंदाज में नाटी इमली पहुंचे। उन्हें देखकर गदगद काशीवासी तीन से चार मिनट तक लगातार हरहर महादेव का घोष करते रहे। स्थिति यह हो गई कि भरत मिलाप की लीला में विलंब के डर से लीला व्यास को हस्तक्षेप करना पड़ा मगर लीलाप्रेमी कहां सुनने वाले थे।
हाथी पर बैठे डॉ. विभूतिनारायण सिंह ने दोनों हाथ दिखा कर जनमानस को शांत होने के लिए कहा, तब लीला शुरू हो सकी थी। और उसी साल अंतिम बार रामलीला में भाग लेने के बाद महादेव के वरदान तुल्य सरीखे डॉक्टर विभूति नारायण सिंह का देहावसान हो गया और हम अपने बीच आज भी जब नॉटी इमली का प्रसिद्ध भरत मिलाप होता है तो उनकी कमी को महसूस करते हैं। ऐसा लगता है मानो जैसे हर काशीवासी नाटी ईमली के प्रसिद्ध लक्खा भीड़ में आने के बाद उनकी एक झलक पाने के लिए व्याकुल होकर जैसे खोज करता है।