वाराणसी :: रेनकोट पहन कर श्रीराम ने किया ताड़का वध, रामनगर की रामलीला में दिखा अद्भुत नजारा, तस्वीरों में सजीव चित्रण देखें,,,।
वाराणसी :: रामनगर की विश्वप्रसिद्ध रामलीला के दौरान हो रही बारिश में भी आस्थावान डटे थे। रेनकोट पहने श्रीराम ने ताड़का वध किया। वहीं, कीचड़ के कारण मूल स्थान से थोड़ा हटकर ताड़का वध की रामलीला हुई।
धरती को राक्षसों से मुक्त करने के लिए अवतरित प्रभु श्रीराम ने ताड़का वध से इसका श्रीगणेश किया। राक्षसों का वध कर ऋषियों-मुनियों की यज्ञादि की राह निष्कंटक की।
रामनगर की विश्व प्रसिद्ध रामलीला के तीसरे दिन शनिवार को विश्वामित्र आगमन, ताड़का सुबाहु वध, मारीच निरसन, अहिल्या तारण, गंगा दर्शन, मिथिला प्रवेश, श्रीजनक मिलन प्रसंगों की लीला हुई। प्रसंगानुसार विश्वामित्र के आगमन से रामलीला की शुरुआत हुई। ब्राह्मण दल के साथ राजा दशरथ मुनि की अगवानी करते हैं।
सिंहासन पर विराजमान कराकर चारों पुत्र राम-भरत, लक्ष्मण शत्रुघ्न को उनसे आशीर्वाद दिलाते हैं। विश्वामित्र राक्षसों के उत्पात से यज्ञ में बाधा की जानकारी देते हैं। इससे मुक्ति के लिए राम-लक्ष्मण को साथ ले जाने का आग्रह करते हैं।
मुनि की मंशा जान व्याकुल राजा दशरथ गुरु वशिष्ठ के समझाने पर बुझे मन से श्रीराम-लक्ष्मण को विश्वामित्र के साथ जाने की आज्ञा देते हैं। वन में राक्षसी ताड़का हुंकार भरते हुए प्रभु श्रीराम की ओर दौड़ पड़ती है। लंबे युद्ध के बाद प्रभु श्रीराम के एक बाण से ही उसका प्राणांत हो जाता है।
श्रीराम-लक्ष्मण मुनि विश्वामित्र से भूख-प्यास से विचलित न होने और बल प्राप्ति की मंत्र विद्या प्राप्त करते हुए ऋषियों से निर्भय होकर यज्ञ करने को कहते हैं। ताड़का का पुत्र मारीच सेना लेकर श्रीराम से युद्ध करने आता है लेकिन प्रभु के बिना फल वाले बाण से वह समुद्र पार लंका में जा गिरता है।
श्रीराम सुबाहु का उसकी सेना समेत वध करते हैं। हर्षित देवगण आकाश से प्रभु की जयकार करते हैं। विश्वामित्र श्रीराम-लक्ष्मण को सीता स्वयंवर के बारे में बताते हैं।
वन के रास्ते में एक शिला देख जिज्ञासु श्रीराम को विश्वामित्र, गौतम ऋषि द्वारा अपनी पत्नी अहिल्या को श्राप देकर शीला बनाने की कथा सुनाते हैं। ऋषि की आज्ञा से श्रीराम शीला को पैरों से स्पर्श करते हैं और अहिल्या प्रकट हो तर जाती हैं। गुरु विश्वामित्र संग श्रीराम-लक्ष्मण का आगमन सुन राजा जनक उनका स्वागत करते हैं। विश्वामित्र संग श्रीराम-लक्ष्मण की आरती कर लीला को विश्राम दिया गया।