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झारखंड का प्रसिद्ध काली मेला... जहां चट हो जाती 25 क्विंटल जलेबियां,अनोखी एतिहासिक मंदिरों वाले गांव की है परंपरा,,,।

झारखंड का प्रसिद्ध काली मेला... जहां चट हो जाती 25 क्विंटल जलेबियां,अनोखी एतिहासिक मंदिरों वाले गांव की है परंपरा,,,।

झारखंड। दुमका के ऐतिहासिक मंदिरों का गांव मलूटी में काली पूजा के अवसर पर सात दिवसीय पारंपरिक मेला की शुरुआत रविवार से हो गई है। सोमवार शाम गांव के विभिन्न हिस्सों में स्थापित मां काली की नौ प्रतिमाओं का एक विसर्जन अलग-अलग तालाबों में किया गया। इस दौरान पूरे मलूटी, प्रतापपुर समेत आस-पास के गांवों के ग्रामीण और श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी थी। मां काली का विसर्जन यहां पारंपरिक तरीके से देर रात तक चला।

तंत्र-मंत्र की साधना भूमि मलूटी गांव के विभिन्न हिस्सों में हरेक साल मां काली की आठ मंदिरों के अलावा इसी पंचायत के प्रतापपुर गांव में भी पूरे विधि-विधान से काली की पूजा की जाती है।

यहां के श्मशान काली में तांत्रिक तंत्र साधना के साथ मां की पूजा-अर्चना करते हैं। यहां काली पूजा के दौरान तारापीठ समेत कई इलाकों से तांत्रिकों का आगमन होता है। अधिकांश तांत्रिकों का जमावड़ा श्मशान काली मंदिर में ही होता है। छय तरफ भैंसा व भेड़ की बलि देने की परंपरा आज भी जारी है, जबकि शेष हिस्सों में पाठा, ईख व कोहड़ा की बलि दी जाती है।

25 क्विंटल से अधिक जलेबी बिक्री का अनुमान

मलूटी में काली पूजा पर सात दिवसीय मेला रविवार से शुरू हो चुका है। यहां मां मौलीक्षा के मंदिर प्रांगण के अलावा बांदार काली परिसर में मेला लगा है। गांव के कुमुदवरण राय बताते हैं कि मौलीक्षा मंदिर प्रांगण में मेला तीन दिन और बांदार काली में सात दिन तक चलेगा। इस दौरान यहां सर्वाधिक डिमांड जिलेबी की रहती है।

सात दिनों में तकरीबन 25 क्विंटल जिलेबी की खपत हो जाने की अनुमान है और यही वजह है कि कई कारीगर अपनी दुकान लगाते हैं। इसके अलावा मेला में मनीहारी सामग्रियों और आईसक्रीम भी खूब बिकता है।

तारामाची और अन्य झूले लगाने वालों को भी अच्छी आमदनी होती है। इस मेला में खास तौर पर पश्चिम बंगाल के मसरा, कास्टकोला, हस्तीकोदा, मल्लारपुर, रामपुरहाट के अलावा शिकारीपाड़ा प्रखंड के धानधड़ा, कुसंदा समेत मलूटी पंचायत के अधिकांश गांवों के ग्रामीणों की भीड़ यहां उमड़ी है जिसमें आदिवासियों की भी भीड़ जबरदस्त होती है।

'बाबू, आप लोगों की पूजा, खर्चा हमारा'

काली पूजा के दौरान मलूटी पंचायत के आस-पास के ग्रामीण बड़ी संख्या में मेला देखने आते हैं। ऐसे में दूर-दराज के लोग गांव में आकर अपने रिश्तेदार के यहां ठहर जाते हैं।

खासकर आदिवासी समुदाय के लोग मेला के दौरान अपने रिश्तेदारों के यहां आकर अवश्य ठहरते हैं। सोमवार को प्रतापपुर के एक आदिवासी युवक ने मलूटी के जमींदार परिवार के सदस्य से कहा कि बाबू, आप लोगों की पूजा है पर खर्चा हमारा हो रहा है। कई मेहमान तो यहां सातों दिन आकर रहते हैं और मेला खत्म होने के बाद ही अपने घर वापस लौटते हैं।