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काशी में कान्हा ने किया कालिया नाग का मान मर्दन, देखने के लिए उमड़ी हजारों की भीड़,,,।

काशी में कान्हा ने किया कालिया नाग का मान मर्दन, देखने के लिए उमड़ी हजारों की भीड़,,,।

वाराणसी : भारत की सांस्कृतिक राजधानी काशी ने आज भी सैकड़ों साल पुरानी परंपरा को निभाकर देश और दुनिया से जुटे हजारों सैलानियों को आश्चर्यचकित कर दिया। जी हां, काशी में आज 'नाग नथैया' हुई। काशी में सदियों से निभाई जा रही इस परंपरा में कृष्ण और कालिया नाग की लीला को दर्शाया जाता है।

ये वही लीला है जिसे हमारे पौराणिक ग्रंथों में बताया गया है कि भगवान कृष्ण ने विषधर नाग कालिया का मान-मर्दन करने के लिए उफनी यमुना में उसे नाथकर उसके मस्तक पर नृत्य किया था।

काशी में हर साल की तरह इस साल भी उसी पौराणिक कथा को काशीवासियों ने पूरे हर्षोउल्लास के मनाया। लेकिन यहां बस फर्क एक ही था कि काशी के कान्हा ने यमुना की जगह गंगा में कालिया नाग को नाथने का काम किया।

काशी के तुलसीघाट पर सैकड़ों साल से मनायी जाने वाली इस 'नाग नथैया' लीला को जब जीवंत किया गया तो हजारों सैलानियों की भीड़ मंत्रमुग्ध होकर सारा दृश्य देख रही थी। इस दौरान गंगा किनारे आस्था और विश्वास के अटूट संगम का नजारा देखने को मिला। काशी में ऐसा लगा मानो गंगा कुछ समय के लिए यमुना में बदल गई हों और उसके बाद गंगा की आंचल में दोहराई गई हजारों वर्ष पुरानी वृंदावन की लीला।

तुलसी घट पर आयोजित इस लीला में दिखाया गया कि घाट पर खेलते-खेलते कृष्ण ने अचानक गंगा में छलांग लगा दी। काफी देर बाद जब वो निकले तो कालिया नाग के फन पर सवार थे और उसे नाथकर उसका मर्दन कर रहे थे। पूरा घाट कान्हा के कदम के पेड़ से छलांग लगाते ही वृंदावन बिहारी लाल की जय और हर-हर महादेव का जयघोष गूंज उठा।

काशी में 'नाग नथैया' की इस परंपरा की शुरूआत अखाड़ा गोस्वामी तुलसीघाट की ओर से लगभग साढ़े चार सौ साल पहले हुई थी। कहा जाता है कि इसकी शुरुआत स्वयं गोस्वामी तुलसीदास ने की थी।