Headlines
Loading...
Kalashatmi : साल 2024 में कब है पहली कालाष्टमी? पढ़िए कालभैरव की कथा,,,।

Kalashatmi : साल 2024 में कब है पहली कालाष्टमी? पढ़िए कालभैरव की कथा,,,।

हिंदू पंचांग के अनुसार, हर माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी मनाई जाती है और साल में एक बार कालभैरव जयंती मनाई जाती है। कालाष्टमी के दिन भगवान महादेव के रौद्र अवतार कालभैरव देव की पूजा करने का विधान है। मान्यता है कि भगवान कालभैरव की पूजा-अर्चना करने से बुरी शक्तियों से छुटकारा मिलता है।

कब है कालाष्टमी 2024?

इस बार साल की पहली कालाष्टमी 4 जनवरी 2024 को है। धार्मिक मान्यता है कि कालाष्टमी पर पूरे विधि-विधान के साथ पूजा और व्रत करने पर व्यक्ति को जीवन के सभी भय, दुख और संकट से मुक्ति मिलती है, साथ ही सुख-सौभाग्य की भी प्राप्ति होती है।

विश्वनाथ को काशी का राजा कहा जाता है, लेकिन कालभैरव के दर्शन किए बगैर विश्वनाथ का दर्शन भी अधूरा माना जाता है इसलिए कालभैरव को काशी का कोतवाल भी कहा जाता है।

कालभैरव का काशी से क्या है नाता?

भगवान शिव के रौद्र अवतार कालभैरव का काशी से गहरा नाता माना जाता है। भगवान शिव की नगरी कही जाने वाली काशी जिसे वाराणसी भी कहते हैं, वहां के कोतवाल कोई और नहीं बल्कि भगवान कालभैरव माने जाते हैं। मान्यता है कि काशी की देखरेख और सुरक्षा की जिम्मेदारी उनके ऊपर ही है इसलिए वहां पर काशी विश्वनाथ के दर्शन से पहले उनके दर्शन करना जरूरी होता है।

ऐसा कहा जाता है कि उस व्यक्ति को शिव जी के दर्शन का फल नहीं मिलता जो काशी में जाकर कालभैरव के दर्शन करके उनका आशीर्वाद नहीं लेता। ये सभी जिम्मेदारी उन्हें किसी और ने नहीं बल्कि खुद महादेव ने दी है, लेकिन क्या आप जानते है कि ये सभी जिम्मेदारी खास उन्हें ही क्यों दी गई है।

भगवान शिव का रौद्र रूप

शिव पुराण में कहा गया है कि कालभैरव भगवान शिव के ही रूप हैं। मान्यता है कि रविवार और मंगलवार को इनका दर्शन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। काशी में आने वाला कोई भी भक्त इनके दर्शन किए बिना कोई काम शुरू नहीं करता, क्योंकि कालभैरव को काशी का कोतवाल कहा जाता है।

कालभैरव देव को क्यों कहा जाता है काशी का कोतवाल?

शिव पुराण की कथाओं के अनुसार, एक बार देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णु जी से पूछा कि जगत में सर्वश्रेष्ठ कौन है तो ब्रह्मा जी ने अपना नाम लिया और खुद को श्रेष्ठ बताया और भगवान शिव की निंदा करने लगे। ब्रह्मा की ये सब बातें सुनकर भगवान शंकर को बहुत क्रोध आया जिसके बाद उन्होंने अपने रौद्र रूप में आकर कालभैरव स्वरूप को जन्म दिया। ब्रह्मा द्वारा भगवान शिव के अपमान का बदला लेने के लिए कालभैरव ने अपने नाखून से ब्रह्मा जी के पांचवे सिर को काट कर अलग कर दिया जिससे उनपर ब्रह्मा हत्या का दोष लग गया था।

इसलिए कहलाए काशी के कोतवाल

ब्रह्मा हत्या के पाप से मुक्ति पाने और प्रायश्चित करने के लिए भगवान शिव ने कालभैरव को पृथ्वी पर जाने का आदेश दिया। ब्रह्मा हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए कालभैरव काशी पहुंचे, जहां उन्हें इस हत्या के दोष से मुक्ति मिली. फिर कालभैरव काशी में ही स्थापित हो गए और इस यहां के कोतवाल कहलाए।