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शिवनगरी काशी ने मनाया पार्वती पुत्र गणेश का धूमधाम से प्राकट्योत्सव,,,।

शिवनगरी काशी ने मनाया पार्वती पुत्र गणेश का धूमधाम से प्राकट्योत्सव,,,।

भगवान शिव की नगरी काशी में पार्वती पुत्र गणेश का प्राकट्योत्सव सोमवार को भक्तिभाव से मनाया गया। भक्त प्रथमेश के पूजन-स्तवन में रमे रहे। गणपति दरबार में भक्तों ने शीश झुकाया तो कहीं रच-रचकर उनका दरबार सजाया। काशी के गणेश मंदिरों में भव्य शृंगार, पूजन एवं आरती के विधान संपादित किए गए। संतान की दीर्घायु और परिवार में सुख-समृद्धि के लिए महिलाओं ने व्रत रखा। भीड़ का प्रमुख केंद्र लोहटिया स्थित बड़ागणेश, सोनारपुरा स्थित चिंतामणि गणेश एवं दुर्गाकुंड स्थित दुर्ग विनायक मंदिर रहा।

बड़ा गणेश में सविधि मनाया गया जन्मोत्सव

बड़ागणेश मंदिर में विघ्नहर्ता का जन्मोत्सव सविधि मनाया गया। ब्रह्म मुहूर्त में मंगला आरती के साथ मंदिर का पट खुला। गणपति को 1008 लड्डुओं का भोग लगाया गया। हाथों में दूर्वा की माला और तिल व गुड़ मिश्रित मोदक लिए भक्तों के दर्शन-पूजन का क्रम देर रात तक चला। मंदिर से शुरू हुई भक्तों की कतार कबीरचौरा अस्पताल के आगे तक पहुंच गई थी। पटरियों और ठेले पर फल-फूल सहित व्रत-पूजन का सामान दिन भर बिका।

दुर्ग विनायक मंदिर में भव्य शृंगार

दुर्गाकुंड स्थित दुर्ग विनायक मंदिर में भव्य शृंगार किया गया। ब्रह्म मुहूर्त से रात्रि में शयन आरती के बाद मंदिर बंद होने तक भक्तों की कतार लगी रही। प्रात: भगवान गणेश के विग्रह को पंचामृत स्नान कराया गया। इत्र एवं सिंदूर लेपन किया गया। नूतन वस्त्र एवं फूलों से बने आभूषण धारण कराए गए। पांच वैदिकों ने गणेश अथर्वशीर्ष का पाठ किया गया। इसके बाद दूर्वा एवं लावा से लाक्षार्चन हुआ। ऋतु फल और मिष्ठान का भोग अर्पित करने के बाद विशेष आरती की गई। शाम को मंदिर में 11 किलो का फलाहारी केक काटा गया। महंत पं. ताड़केश्वर दुबे ने विराट आरती उतारी।

अन्य मंदिरों में भी रही भीड़

सोनारपुरा स्थित श्रीचिंतामणि गणेश मंदिर और उससे लगायत गली श्रद्धालुओं से ठसाठस रही। महंत चल्ला सुब्बाराव शास्त्री के सानिध्य में मंगला आरती के बाद दर्शन शुरू हुआ। मणिकर्णिका गऊमठ स्थित प्राचीन सिद्धिविनायक महाराज के दर्शन के लिए सुबह से ही श्रद्धालुओं का तांता रहा। प्रबंधक गोपाल सुरेलिया एवं महंत राजेंद्र शर्मा (दीपू गुरु) ने ब्रह्ममुहूर्त में सिद्धिविनायक का शृंगार किया गया। मोदक का भोग लगाकर महाआरती की गई।

रात्रि में चंद्रदेव को अर्घ्य

महिला श्रद्धालुओं ने दिन में मंदिरों में शीश नवाया तो शाम ढलने के बाद चंद्रोदय की प्रतीक्षा की। रात 08:52 बजे चंद्रदेव के दर्शन हुए। इसके बाद चंद्रदेव को अर्घ्य दिया गया। इस दौरान कहीं शंख-घंट गूंज उठा तो कहीं थाली बजाई गई। व्रतियों ने मंगलमूर्ति की विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर पुत्र के दीर्घायु सहित यश-वैभव की प्राप्ति की मंगलकामना की।