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वाराणसी  :: भक्ति साहित्य और सामाजिक ताने-बाने को बचाने की कोशिश : डॉ. अविनाश,,,।

वाराणसी :: भक्ति साहित्य और सामाजिक ताने-बाने को बचाने की कोशिश : डॉ. अविनाश,,,।

एलबीएसएम कॉलेज के सेमिनार हॉल में शैक्षणिक व्याख्यान शृंखला के अंतर्गत महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अविनाश कुमार सिंह ने भक्ति साहित्य और समाज विषय पर व्याख्यान दिया। यह व्याख्यान हिन्दी विभाग की ओर से आयोजित किया गया था।

डॉ. अविनाश कुमार सिंह ने कहा कि भक्ति साहित्य ने समाज में प्रेम की भावना को फैलाने का काम किया। नफरत, कट्टरता और पारस्परिक ईर्ष्या-द्वेष का विरोध किया। उन्होंने कहा कि भक्ति साहित्य सामाजिक ताने-बाने को बचाने की कोशिश करता है। नफरत की भावना पूरे समाज को तोड़ती है। वह पूरे समाज के लिए विनाशकारी है। संतों ने प्रेम के जरिए भारतीय समाज को बचाया। कबीर ने कहा कि हमन हैं इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या। जायसी ने राजा रत्नसेन और पद्‌मावती की प्रेम कथा लिखी। तुलसीदास को समन्वयवादी कहा गया। संत निःसंग होते हैं, पर दुनिया के कल्याण के लिए उनके संग भी होते हैं। वे समाज से निर्लिप्त होकर भी उसके कल्याण की बात करते हैं।

भक्त कवियों ने बताया कि सबके भीतर एक ही ईश्वर या खुदा हैं। दोनों अलग-अलग नहीं हैं। भक्ति साहित्य ने यह सीख दी कि प्रेम नि:स्वार्थ, निष्काम और बिना शर्तों का होना चाहिए। यह वैसा होना चाहिए, जैसे मां का अपने बच्चे के प्रति होता है। मां सभी बच्चों से प्रेम करती है, जबमें उनमें टकराव होता है तो उन्हें मिलाने का काम करती है। भक्त कवियों का साहित्य समाज के साथ-साथ राजनीति, धर्म और अर्थ नीति सबके लिए दिशा-निर्देशक हैं। 

हमारे देश की गंगा-जमुनी तहजीब और साझी संस्कृति को गढ़ने में भक्ति साहित्य की अहम भूमिका है। शासक कभी जनता को एक होने देना नहीं चाहते, पर जनता मिलकर रहना चाहती है। इसी कारण भक्ति साहित्य अतीत में जितना प्रासंगिक था, वर्तमान में भी उतना ही प्रासंगिक है। वह हमारी विविधता, बहुरंगी समाज और लोकतंत्र के लिए जरूरी है। 

धन्यवाद ज्ञापन हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. पुरुषोत्तम प्रसाद ने किया। इस अवसर पर प्राचार्य प्रो. अशोक कुमार झा ने मुख्य वक्ता को अंग-वस्त्र और तुलसी पौधा देकर सम्मानित किया। व्याख्यान के दौरान डॉ. डीके मित्रा, डॉ. विनोद कुमार, डॉ. दीपंजय श्रीवास्तव, बाबूराम सोरेन, डॉ. संतोष राम, डॉ. शबनम परवीन, डॉ. विजय प्रकाश और डॉ. सुधीर कुमार भी मौजूद थे। संचालन डॉ. विनय कुमार गुप्ता ने किया।