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मुख्तार अंसारी का जलवा :: दुस्साहस से खौफ खाती थी पुलिस, डीजीपी मुख्यालय में थी सीधी इंट्री, जेलर पर तान दी थी रिवाल्वर,,,।

मुख्तार अंसारी का जलवा :: दुस्साहस से खौफ खाती थी पुलिस, डीजीपी मुख्यालय में थी सीधी इंट्री, जेलर पर तान दी थी रिवाल्वर,,,।

जेल में रहकर भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या करानै का दुस्साहस करने वाले माफिया मुख्तार अंसारी से तमाम बड़े अफसर भी खौफ खाते थे। जेल में रहने के बावजूद उसकी डीजीपी मुख्यालय में सीधी इंट्री होती थी। मऊ दंगे में मुख्तार जब खुली जीप पर असलहा लेकर निकला तो पूरे देश की नजरें उस पर टिक गईं। इससे पहले किसी दंगे में कोई अपराधी इतनी हिम्मत नहीं जुटा सका था। हालांकि मुख्तार कहता रहा कि वह लोगों को शांत कराने गया था।

मुख्तार के बारे में तमाम किस्से कहानियां पुलिस की फाइलों में दर्ज हैं। उसके कारनामे ऐसे थे कि पुलिस ने टाडा, मकोका और पोटा के तहत उसके खिलाफ कार्रवाई की थी। माफिया बृजेश सिंह और विधायक कृष्णानंद राय से उसकी अदावत पूर्वांचल के हर आदमी की जुबान पर थी। इसमें चिंगारी तब भड़की जब 13 जनवरी 2004 को लखनऊ की दिलकुशा क्रॉसिंग पर मुख्तार के काफिले का सामना बृजेश सिंह गैंग से हो गया। उस दौरान मुख्तार का परिवार साथ में था। इस मामले में बृजेश, कृष्णानंद राय, मुन्ना सिंह, अजय सिंह को नामजद किया गया था। 

इसके बाद मुख्तार ने कृष्णानंद राय को ठिकाने लगाने का जिम्मा अपने खास शूटर मुन्ना बजरंगी, बाबू, संजीव महेश्वरी उर्फ जीवा, राकेश पांडेय को सौंपा, जिन्होंने एक साल के भीतर कृष्णानंद राय पर घातक हमला कर हत्या कर दी। मुख्तार ने मुन्ना बजरंगी से कृष्णानंद राय की चोटी काटकर लाने को कहा था। जिसकी पुष्टि मुख्तार और वर्तमान सपा विधायक अभय सिंह के बीच फोन पर हुई बातचीत से हुई थी।

जेलर पर तान दी थी पिस्टल

लखनऊ जेल में रहने के दौरान मुख्तार ने जेलर एसके अवस्थी पर पिस्टल तान दी थी। जेलर ने उसकी मनमानी रोकने की कोशिश की थी, जिसके बाद मुख्तार ने उसे जेल से बाहर निपटाने की धमकी तक दे डाली थी। इसका मुकदमा भी दर्ज हुआ, लेकिन सालों तक प्रभावी पैरवी नहीं होने से सजा नहीं करायी जा सकी। करीब एक वर्ष पूर्व मुख्तार को इस मामले में अदालत ने सजा सुनाई थी।

जेल से आकर कराता था तबादला

बसपा सरकार में मुख्तार का डीजीपी मुख्यालय में कुछ इस कदर जलवा था कि वह जेल से आकर अधिकारियों से मिलता था और उनको पुलिसकर्मियों के तबादले की फेहरिस्त सौंप देता था। आगरा जेल में बंद रहने के दौरान वह विधानसभा की कार्यवाही में हिस्सा लेने आता था और लखनऊ जेल उसका ठिकाना बन जाता था। हालांकि पुलिस अफसरों की मानें तो वह अधिकतर समय अपने घर पर ही गुजारता था। केवल डीजीपी मुख्यालय ही नहीं, अपने काम के लिए वह कई विभागों में अफसरों के पास सीधे चला जाता था।

गाजीपुर जेल में बनवाया था बैडमिंटन कोर्ट

मुख्तार के बारे में यह भी चर्चा रही कि उसने सपा सरकार में गाजीपुर जेल में रहने के दौरान बैडमिंटन कोर्ट बनवा लिया था, जहां उसके साथ खेलने के लिए जिला प्रशासन और पुलिस के अफसर आते थे। मुख्तार के खिलाफ अवैध तरीके से शस्त्र लाइसेंस हासिल करने का मुकदमा गाजीपुर में दर्ज हुआ लेकिन तत्कालीन डीएम आरके तिवारी की गवाही सालों तक नहीं हो सकी। भाजपा सरकार आने के बाद इस मामले की दोबारा पैरवी की गयी।

अतीक करता था मुख्तार के खौफ का इस्तेमाल

यूपी अंडरवर्ल्ड के दो बड़े नाम मुख्तार अंसारी और अतीक अहमद की आपस में खूब बनती थी। रेलवे के ठेकों को हासिल करने के लिए दोनों एक-दूसरे की मदद लेते रहे। अतीक ने अपने दुश्मनों को ठिकाने लगाने के लिए मुख्तार के शूटरों का कई बार इस्तेमाल किया। दोनों ने अपना प्रभाव यूपी और बिहार के साथ कोलकाता और मुंबई तक फैलाया और तमाम कारोबारियों से जमकर वसूली की।

एसटीएफ रही शांत, बड़े अफसर नहीं लेते थे नाम

मुख्तार का खौफ इस कदर था कि वर्ष 2017 से पहले प्रदेश पुलिस के बड़े अफसर उस पर कार्रवाई करना तो दूर, नाम लेने तक से कतराते थे। संगठित अपराध का खात्मा करने के लिए बनाई गयी एसटीएफ मुख्तार और उसके शूटरों पर शिकंजा कसने में बेबस थी। मुख्तार के शूटरों के ठिकानों का पता चलने पर भी बड़े अफसर कार्रवाई करने की अनुमति देने से कतराते थे।

छह करोड़ की दी गयी सुपारी

मुख्तार की हत्या कराने के लिए माफिया ब्रजेश सिंह ने छह करोड़ रुपये की सुपारी भी दी थी। इसका खुलासा दिल्ली में गिरफ्तार हुए बिहार के अपराधी लंबू शर्मा ने किया था। वहीं दो साल पहले भी मुख्तार ने एमपी-एमएलए कोर्ट में गुहार लगाई थी कि जेल में तमाम संदिग्ध लोगों की आमद हो रही है। उसे मारने के लिए पांच करोड़ रुपये की सुपारी दी गयी है। हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हुई।

लखनऊ में स्थापित किया रीयल एस्टेट का कारोबार

अपहरण और वसूली का कारोबार कम होने पर मुख्तार ने लखनऊ में रीयल एस्टेट में हाथ आजमाया और खासी सफलता भी हासिल की। शहर के तमाम बिल्डर मुख्तार के इशारे पर काम करने लगे और हर प्रोजेक्ट में उसका भी हिस्सा भी तय होने लगा। नजूल और शत्रु संपत्ति पर अवैध कब्जा कर आलीशान इमारतें बनाने का खेल लंबे वक्त तक चलता रहा।

बुलेटप्रूफ जैकेट और गाड़ी

मुख्तार यूपी का पहला ऐसा माफिया था, जिसके पास बुलेटप्रूफ गाड़ी और जैकेट थी। इसका खुलासा तब हुआ, जब पुलिस ने उसके एक ठिकाने से बुलेटप्रूफ जैकेट बरामद की। पूछताछ में सामने आया कि उसने पंजाब में अपनी गाड़ी को भी बुलेटप्रूफ कराया था। दरअसल, उस दौरान मुख्तार को बृजेश सिंह द्वारा हमला कराने का डर था, जिसकी वजह से वह अपनी सुरक्षा बढ़ा रहा था। मोबाइल आने से पहले उसके काफिले की सभी गाड़ियों में वॉकी-टॉकी भी रहता था।