शनि प्रदोष व्रत::शनि प्रदोष के दिन करें यह उपाय मिलेगा रोगों से छुटकारा, जीवनभर शरीर स्वस्थ निरोगी रहेगा...
ज्योतिष न्यूज़ डेस्क :: सनातन धर्म में कई सारे पर्व मनाए जाते हैं और सभी का अपना महत्व भी होता है लेकिन प्रदोष व्रत को बेहद ही खास माना गया है जो कि शिव पूजा को समर्पित होता है इस दिन भक्त भगवान शिव की विधिवत पूजा करते हैं और व्रत आदि भी रखते हैं पंचांग के अनुसार हर माह की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत किया जाता है जो कि माह में दो बार आता है। अभी चैत्र मास चल रहा है और इस माह का प्रदोष व्रत 6 अप्रैल दिन शनिवार यानी कल किया जाएगा।
शनिवार के दिन प्रदोष व्रत पड़ने के कारण इसे शनि प्रदोष व्रत के नाम से जाना जा रहा है इस दिन शिव साधना अगर विधि विधान से की जाए तो सुख समृद्धि और संपन्नता का आशीर्वाद मिलता है इसके अलावा अगर शनि प्रदोष के दिन शिव पूजन के समय शिव स्तोत्र का पाठ भक्ति भाव से किया जाए तो सभी प्रकार के रोगों से छुटकारा मिलता है और निरोगी जीवन प्राप्त होता है।
श्री शिव शंकर स्तोत्र-
अतिभीषणकटुभाषणयमकिङ्किरपटली-
-कृतताडनपरिपीडनमरणागमसमये ।
उमया सह मम चेतसि यमशासन निवसन्
शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ ।। १ ॥
असदिन्द्रियविषयोदयसुखसात्कृतसुकृतेः
परदूषणपरिमोक्षण कृतपातकविकृतेः ।
शमनाननभवकानननिरतेर्भव शरणं
शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ ।। २ ॥
विषयाभिधबडिशायुधपिशितायितसुखतो
मकरायितगतिसंसृतिकृतसाहसविपदम् ।
परमालय परिपालय परितापितमनिशं
शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ ।। ३ ॥
दयिता मम दुहिता मम जननी मम जनको
मम कल्पितमतिसन्ततिमरुभूमिषु निरतम् ।
गिरिजासख जनितासुखवसतिं कुरु सुखिनं
शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ ।। ४ ॥
जनिनाशन मृतिमोचन शिवपूजननिरतेः
अभितोऽदृशमिदमीदृशमहमावह इति हा ।
गजकच्छपजनितश्रम विमलीकुरु सुमतिं
शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ ।। ५ ॥
त्वयि तिष्ठति सकलस्थितिकरुणात्मनि हृदये
वसुमार्गणकृपणेक्षणमनसा शिवविमुखम् ।
अकृताह्निकमसुपोषकमवताद्गिरिसुतया
शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ ।। ६ ॥
पितराविति सुखदाविति शिशुना कृतहृदयौ
शिवया हृतभयके हृदि जनितं तव सुकृतम् ।
इति मे शिव हृदयं भव भवतात्तव दयया
शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ ।। ७ ॥
शरणागतभरणाश्रित करुणामृतजलधे
शरणं तव चरणौ शिव मम संसृतिवसतेः ।
परिचिन्मय जगदामयभिषजे नतिरवतात्
शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ ।। ८ ॥
विविधाधिभिरतिभीतिभिरकृताधिकसुकृतं
शतकोटिषु नरकादिषु हतपातकविवशम् ।
मृड मामव सुकृतीभव शिवया सह कृपया
शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ ।। ९ ॥
कलिनाशन गरलाशन कमलासनविनुत
कमलापतिनयनार्चित करुणाकृतिचरण ।
करुणाकर मुनिसेवित भवसागरहरण
शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ ।। १० ॥
विजितेन्द्रियविबुधार्चित विमलाम्बुजचरण
भवनाशन भयनाशन भजिताङ्गितहृदय ।
फणिभूषण मुनिवेषण मदनान्तक शरणं
शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ ।। ११ ॥
त्रिपुरान्तक त्रिदशेश्वर त्रिगुणात्मक शम्भो
वृषवाहन विषदूषण पतितोद्धर शरणम् ।
कनकासन कनकाम्बर कलिनाशन शरणं
शिवशङ्कर शिवशङ्कर हर मे हर दुरितम् ॥ ।। १२ ॥
।। इति श्री शिव शंकर स्तोत्र ॥