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बदला पहाड़ों पर मौसम, टूटा पिछले 122 सालों का रिकॉर्ड, वैज्ञानिक बोले- ये तो बस...

बदला पहाड़ों पर मौसम, टूटा पिछले 122 सालों का रिकॉर्ड, वैज्ञानिक बोले- ये तो बस...

उत्तराखंड, पिथौरागढ़। बीते सालों तक पहाड़ इन दिनों में प्री मानसून बारिश से भीग चुके होते थे लेकिन इस बार नजारा एकदम बदला हुआ है. आलम ये है कि सूरज की तपिश कहर बनकर टूट रही है. जिन पहाड़ी इलाकों का तापमान बीते सालों में कभी भी 30 डिग्री के पार नहीं गया, वहां इस बार पारा 35 डिग्री से अधिक जा पहुंचा है।पर्यावरण और मौसम के जानकार कहते हैं कि ये तो बस एक शुरुआत है, आने वाले सालों में तो भारी कीमत चुकानी है।

आलम ये है कि पहाड़ी इलाकों में अधिकतम के साथ ही न्यूनतम पारा भी चढ़ा हुआ है. बताया जा रहा है कि इस बार गर्मी ने बीते 122 साल का रिकॉर्ड तोड़ा है. जिसका असर पहाड़ी इलाकों में भी साफ नजर आ रहा है. वैज्ञानिक मामलों के जानकार जेके बिष्ट कहते हैं कि पहाड़ों में बढ़ते तापमान के लिए ग्लोबल वार्मिंग तो बड़ी वजह है ही. साथ ही पेड़ों का अंधाधुंध कटान और अनियोजित विकास भी पारे को चढ़ाने में कारगर साबित हो रहा है।

पहाड़ पर बस रहे हैं कॉन्‍क्रीट के जंगल, इंसान दखल बढ़ने से हो रहा नुकसान

वैज्ञानिक मामलों के जानकार जेके बिष्ट ने बताया कि असल में बीते सालों में ऐसे पहाड़ी इलाकों में भी रोड कटी हैं. जहां आमतौर पर इंसानी दखल काफी कम होता था. यही नहीं पारंपरिक भवन शैली को भी दशकों पहले लोग अलविदा कह चुके हैं. ऐसे में पहाड़ के सभी शहर कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो गए हैं. नतीजा ये हैं कि सीमेंट के घर न तो गर्मी रोकने में कारगर साबित होते हैं, और ना ही पर्यावरण के फायदेमंद हैं।

ग्लेशियर की स्थिति भी चिंताजनक, ईको सिस्‍टम भी गड़बड़ाया

जीबी पंत हिमालया पर्वायरण संस्थान के निदेशक डॉ सुनील नौटियाल कहते हैं कि पहाड़ों में जिस तेजी से पारा चढ़ रहा है. उससे ग्लेशियर की स्थिति में भी खासा असर पड़ रहा है. मौसम के बदले मिजाज ने ईको सिस्टम को तो प्रभावित किया ही है. साथ ही ये जल संकट को भी बुला रहा है. बारिश कम होने से जहां भू-गर्भीय जल स्तर नीचे गिर रहा है. वहीं पारा चढ़ने से ग्लेशियर के गलने की रफ्तार भी बढ़ रही है।