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काशी के शेर अलीम अली ने कारगिल युद्ध में   शरीर में 8 गोलियां लगने के बाद भी चोटी पर फहराया तिरंगा.. दुश्मनों के दांत किए खट्टे...

काशी के शेर अलीम अली ने कारगिल युद्ध में शरीर में 8 गोलियां लगने के बाद भी चोटी पर फहराया तिरंगा.. दुश्मनों के दांत किए खट्टे...

वाराणसी, ब्यूरो। काशी के शेर चौबेपुर के अलीम अली अखाड़े में पहलवानी के दांव-पेंच लगा रहे थे। देश के लिए पदक जीतने थे, मगर दिल में ख्वाब सेना में जाने का पल रहा था। पहलवानी करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर कांस्य और दो बार रजत पदक जीते और राज्य स्तर पर एक बार स्वर्ण और दो बार रजत पदक अपने नाम किया।
इसी पहलवानी के रास्ते 1990 में सेना में भर्ती हो गए।

काशी के शेर अलीम अली 1999 में कारगिल युद्ध में 22 ग्रेनेडियर टुकड़ी के हिस्सा रहे और दुश्मनों से लड़ते हुए शरीर में आठ गोलियां लगीं। मगर चोटी पर तिरंगा फहराने तक लड़ते रहे और मौत को भी मात दे दी। अलीम अली आज भी 1999 की उस गौरवगाथा को बताते हुए गर्व से भर जाते हैं। वह बताते हुए इस तरह की भाव भंगिमा में चले जाते हैं मानों अभी युद्ध में ही हैं।

चौबेपुर क्षेत्र के सरसौल गांव निवासी अलीम अली 1990 में सेना में भर्ती हुए थे। जुलाई 1992 से सितंबर 1995 तक कश्मीर में चल रहे ऑपरेशन रक्षक हिस्सा रहे। 1999 में जब युद्ध हुआ तो वह छुट्टी पर थे और दोस्त की शादी में घर आए हुए थे। 

युद्ध के दौरान छुट्टियां रद्द कर दी गईं और वह अपनी हैदराबाद की बटालियन से जुड़ गए और पहुंच गए कारगिल। 40 जवानों की उनकी एक टुकड़ी 21 हजार फीट ऊंचाई जुबेर चोटी पर पहुंची। 

दो जुलाई को सूचना मिली कि चोटी पर ऊपर पाकिस्तानी सैनिक बंकर बना रही है। हम लोगों ने निगरानी शुरू की मगर कहीं कोई गतिविधि नहीं दिखाई दी। चोटी की ऊंचाई अधिक थी और हम लोग थोड़ा नीचे की ओर थे। 

सभी ने चढ़ाई शुरू की और आधे से अधिक ऊंचाई पर पहुंच गए इसी बीच दुश्मनों ने ऊपर से फायरिंग शुरू कर दी। हमारी टुकड़ी ने भी जवाबी फायरिंग शुरू की और ऊपर चढ़ना भी जारी रखा। 

वह ऊपर से फायरिंग कर रहे थे और हमारी टुकड़ी नीचे से ही निशाना बनाकर खुद का बचाव करते हुए दुश्मनों को मार भी रही थी। इसमें हमारे 10 जवान शहीद हो गए थे और 25 बुरी तरह घायल हुए थे। मगर हमारी टुकड़ी चोटी पर पहुंची और 35 पाकिस्तानियों को मारते हुए चोटी पर तिरंगा फहरा दिया। खुद अलिम अली को चेहरे, घुटने, कमर, कंधे और सीने समेत शरीर के आठ हिस्सों में गोली लगी थी। 

उन्होंने बताया कि यह गोली अलग-अलग समय में लगीं, गोली लगती रहीं मगर वह लड़ते रहे। वह तब बेहोश होकर खाई में गिरे जब गोली उनके सीने में लगी। चोटी फतह करने के बाद साथी नीचे लाकर आए, जहां इलाज शुरू किया गया। अलीम अली 1999 में कारगिल युद्ध में 22 ग्रेनेडियर टुकड़ी के हिस्सा रहे और दुश्मनों से लड़ते हुए शरीर में आठ गोलियां लगीं। वे आज भी अपने पैतृक घर पर जिंदा है, और लोगों को कारगिल विजय की शौर्य गाथा बताते हैं।