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काशी विश्वनाथ में 350 साल पुरानी परंपरा टूटी, महंत आवास पर लगा पुलिस का पहरा, आज नई प्रतिमा का हुआ शृंगार...

काशी विश्वनाथ में 350 साल पुरानी परंपरा टूटी, महंत आवास पर लगा पुलिस का पहरा, आज नई प्रतिमा का हुआ शृंगार...

वाराणसी, ब्यूरो। विश्वनाथ मंदिर में श्रावणी पूर्णिमा से जुड़ी 350 साल पुरानी परंपरा में इस बार टूट गई। मंदिर प्रशासन ने इसमें बदलाव कर दिया। मंदिर प्रशासन ने पहली बार बाबा विश्वनाथ की अपनी पंचबदन रजत प्रतिमा का शृंगार करवाया। उसे पालकी पर विराजमान कराकर धाम परिसर में शोभायात्रा निकाली गई। फिर, उसी प्रतिमा को गर्भगृह में झूला पर विराजित कर झूलनोत्सव मनाया गया। सावन के अंतिम सोमवार को गौरा-गणेश के साथ झूला झूलते श्रीविश्वनाथ की झांकी सजी।

अब तक यह परंपरा विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत डॉ. कुलपति तिवारी निभाते आ रहे थे। उनके निधन के बाद पुत्र वाचस्पति तिवारी ने तैयारी कर रखी थी लेकिन रविवार को मंदिर प्रशासन ने उन्हें परंपरा के निर्वहन से रोक दिया। बहरहाल, धाम परिसर में मौजूद शिवभक्तों के बीच चल प्रतिमा की शोभायात्रा निकाली गई। इसके पूर्व 11 अर्चकों, ट्रस्टीगण और गणमान्य नागरिकों की उपस्थिति में विधि पूर्वक पंचबदन प्रतिमा को पंचगव्य से स्नान कराया गया। श्रीविश्वनाथ, माता पार्वती तथा भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा का विविध प्रकार के फूलों से शृंगार हुआ। इस दौरान शंख और डमरू वादन के बीच बाबा की आरती हुई। भक्तों ने बाबा की प्रतिमा का झांकी दर्शन किया।

पुलिस ने श्रद्धालुओं को पूर्व महंत आवास जाने से रोका

काशी विश्वनाथ मंदिर के पूर्व महंत आवास से बाबा विश्वनाथ की पंचबदन चल प्रतिमा बाहर न निकाली जा सके, इसके लिए प्रशासन ने सुबह से ही फोर्स तैनात कर दी। आरोप है कि श्रावण पूर्णिमा पर बाबा की पंचबदन प्रतिभा का दर्शन करने टेढ़ीनीम स्थित महंत आवास पहुंचे भक्तों को भी पुलिस ने रोक दिया। उनसे कहा गया कि यहां कोई आयोजन नहीं है। सारे आयोजन विश्वनाथ मंदिर में ही किए जा रहे हैं।

परंपरा के अनुसार विश्वनाथ मंदिर में झूलनोत्सव से पहले महंत आवास पर बाबा की पंचबदन प्रतिमा का विशेष शृंगार किया गया। महंत परिवार की महिलाओं ने महादेव को रखी बांधने की परंपरा भी निभाई। महंत परिवार ने जिला प्रशासन की इस कार्रवाई पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई है। 

पूर्व महंत स्व.डॉ. कुलपति तिवारी के पुत्र पं. वाचस्पति तिवारी ने कहा कि जिस मुकदमे को आधार बनाकर जिला प्रशासन ने यह कार्रवाई की है, वह कई वर्ष पुराना है। यदि ऐसा ही था तो पहले ही परंपरा क्यों नहीं रोक दी गई। वास्तविकता यह है कि काशी विश्वनाथ मंदिर प्रबंधन, काशी की जनता से जुड़ी सभी परंपराओं पर अपना आधिपत्य जमाना चाहता है।

दिवंगत पूर्व महंत की पत्नी का अनशन

पूर्व महंत परिवार की परंपरा से छेड़छाड़ से क्षुब्ध दिवंगत महंत डॉ. कुलपति तिवारी की दृष्टिबाधित धर्मपत्नी मोहिनी देवी सोमवार को अपने आवास मे ही अनशन पर बैठ गईं। इसकी जानकारी एसीपी दशाश्वमेध प्रज्ञा पाठक को हुई तो वह शाम करीब साढ़े पांच बजे टेढ़ीनीम स्थित आवास पहुंचीं और मोहिनी देवी को समझाने का प्रयास किया।

मोहिनी देवी ने स्व.डॉ. कुलपति तिवारी के निधन पर पीएम मोदी की ओर से भेजे गए संवेदना पत्र को दिखाते हुए एसीपी से कहा कि एक तरफ प्रधानमंत्री मेरे पति को विश्वनाथ मंदिर की परंपराओं का संवाहक बताते हैं और दूसरी तरफ जिला प्रशासन ने हमारे परिवार की परंपरा पर कब्जा कर लिया। उन्होंने बार-बार अनुरोध पर इस शर्त पर अनशन खत्म किया कि एक सप्ताह में महंत परिवार की परंपरा की बहाली का पत्र शासन से नहीं मिला तो बेमियादी अनशन करेंगी। मीडिया से बातचीत में मोहिनी देवी ने कहा कि महंत परिवार की महिलाएं कभी पर्दे के बाहर नहीं आईं, लेकिन पूर्वजों की परंपरा और मेरे पति के संघर्षों से काशी की पहचान है। उस पर संकट आने से मुझे यह कदम उठाना पड़ा।

सप्तर्षि आरती के बाद विराजे झूले पर

सांयकाल सप्तर्षि आरती के बाद पंचबदन प्रतिमा को पालकी पर विराजमान करके गर्भगृह में ले जाया गया। मंदिर प्रबंधन की ओर से तैयार कराए गए झूले पर बाबा को विराजमान कराया गया। अधिक से अधिक भक्तगण बाबा के झूलनोत्सव के साक्षी बनें, इसके लिए मंदिर प्रबंधन ने अधिक समय तक काशी द्वार खोले रखा।

पिछले सोमवारों की अपेक्षा भीड़ कम

सोमवार को मंगला आरती के बाद विश्वनाथ मंदिर के पट भक्तों के दर्शनार्थ खोल दिए गए। रक्षाबंधन का त्योहार होने के कारण पांचवें सोमवार को अपेक्षा से कहीं कम भीड़ काशी विश्वनाथ मंदिर पहुंची। मध्याह्न भोग आरती से पहले ही भीड़ का दबाव कम हो गया। जबकि मंदिर प्रबंधन ने सारी तैयारियां सावन के बीते सोमवारों की भांति ही की थी। गंगा के जलस्तर में पुन: बढ़ाव शुरू हो जाने के कारण घाटों पर विशेष सतर्कता बरती गई। जलपुलिस और एनडीआरएफ की निगरानी के बीच कांवरियों ने गंगा स्नान किया।