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वाराणसी चौखम्बा गोपाल मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए दूरबीन लेकर आते थे भक्त, वजह जानकर होंगे हैरान...

वाराणसी चौखम्बा गोपाल मंदिर में भगवान के दर्शन के लिए दूरबीन लेकर आते थे भक्त, वजह जानकर होंगे हैरान...

वाराणसी, ब्यूरो। वाराणसी कोतवाली थाना क्षेत्र के चौखंभा की संकरी गली में गोपाल मंदिर की भव्यता हर किसी को ठिठक जाने पर विवश कर देती है। यहां श्री मुकुंद राय प्रभु और श्री गोपाल लाल जी राधा रानी के साथ भक्तों को दर्शन देते हैं। महाप्रभु वल्लभाचार्य के ठाकुर जी मुकुंद राय जी का स्वरूप विश्व में इकलौता है जो काशी में विराजमान है।

इसके अलावा मुकुंद राय जी का दूसरा विग्रह कहीं नहीं है। मंदिर में विग्रह का आकार छोटा होने के कारण भक्त पहले भगवान की छवि निहारने के लिए दूरबीन लेकर आते थे। वर्तमान पीठाधीश्वर श्याम मनोहर महाराज ने 1992 में गद्दी संभाली तो दर्शन के इंतजाम सहज होने से लोग अब दूरबीन लेकर नहीं आते हैं।

शिव की नगरी में चौखंभा का गोपाल मंदिर वैष्णव समाज के लोगों का बड़ा केंद्र है। गोपाल मंदिर को वैष्णवों का षष्ठपीठ कहा जाता है। काशीवास में गोस्वामी तुलसीदास ने यहां प्रवास किया और विनय पत्रिका की रचना की। नंददास ने भ्रमर गीत लिखे। गोपाल मंदिर में भक्तों को भगवान श्रीकृष्ण के दो स्वरूप श्री गोपाल लाल और श्री मुकुंद राय के दर्शन होते हैं। 

गोपाल मंदिर परिसर में नौ कुएं हैं और एक गुफा भी। मंदिर में स्थापित गोपाल लाल जी और राधिका जी के विग्रह भक्तों को अपनी ओर सहज ही खींच लेते हैं। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण के इन दोनों स्वरूपों के दर्शन से मनवांछित फल प्राप्त होता है। मंदिर के अतुल शाह ने बताया कि श्रीमुकुंद रायजी का विग्रह काशी में इकलौता है। जब हम लोग छोटे थे तो लोग दूरबीन लेकर दर्शन के लिए आते थे। 1992 के बाद से इसमें बदलाव हुआ। दर्शन का स्थान बड़ा कर दिया गया और समय भी बढ़ा दिया गया। इसलिए अब सहजता से प्रभु के दर्शन होते हैं।

उदयपुर में था गोपाललालजी और राधिका जी का विग्रह

ठाकुर श्री गोपाल लाल जी और राधिका जी का यह विग्रह पहले उदयपुर के राणा वंश की एक वैष्णव महिला लाढ़ बाई के पास था। महाप्रभु वल्लभाचार्य के पौत्र गोकुल नाथ ने यह देव प्रतिमा उनसे लेकर सेवा शुरू की। विक्रम संवत 1787 में उनके वंशज गोस्वामी जीवन लाल महाराज विग्रह को काशी लेकर आए और उन्होंने चौखंभा में गोपाल मंदिर बनाकर इसकी स्थापना की। उनके वंशज आज भी अपने देवता की सेवा कर रहे हैं।

गोपाल मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण गोस्वामी जीवन लाल ने संवत 1834 में कराया था। यही वजह है कि मंदिर को जीवन लाल की हवेली भी कहा जाता है। मंदिर परिसर में कमल तलैया और गोस्वामी मुरलीधर लाल के हाथों स्थापित शिलाओं पर ब्रज चौरासी कोस का प्रतिरूप एक बारादरी में विराजमान है। इसकी परिक्रमा यहां आने वाले वैष्णव करते हैं।

सेवा करने वाले हर बार पहनते हैं नया वस्त्र
मंदिर परिसर शुद्धता और पवित्रता का खास ध्यान रखा जाता है। गिरिधर महाराज ने मंदिर परिसर में शुद्धता और पवित्रता को विशेष अहमियत दी थी। ठाकुर जी को लगने वाला भोग मंदिर परिसर में ही बनाया जाता है। ठाकुर जी के सेवइत जिस वस्त्र को पहनकर सेवा करते हैं, उस वस्त्र को दोबारा नहीं पहनते हैं। भगवान के विग्रह को स्पर्श करने का अधिकार सिर्फ दो लोगों को ही है और वे गोस्वामी परिवार के ही हैं।

जन्माष्टमी पर होता है भव्य आयोजन

गोपाल मंदिर में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। अर्धरात्रि भगवान के जन्म से शुरू होने वाला समारोह छठ तक चलता है। भगवान के दर्शन का समय महज 15 मिनट का होता है। सुबह मंगला, शृंगार, पालना और भोग के दर्शन होते हैं। इसके बाद मंदिर का पट बंद हो जाता है। शाम को उत्थापन के बाद होने वाली भोग आरती और शयन आरती को देखने के लिए भक्तों की भारी भीड़ होती है।