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काशी का एकलौता मंदिर जहां होती हैं त्रिकाल संध्या, कुंभकर्ण के पुत्र का वध करने के बाद शिव बने भीमाशंकर...

काशी का एकलौता मंदिर जहां होती हैं त्रिकाल संध्या, कुंभकर्ण के पुत्र का वध करने के बाद शिव बने भीमाशंकर...

धर्म आस्था :: कुंभकर्ण के पुत्र का वध करने के बाद महादेव भीमाशंकर बने। ज्ञानवापी के उत्तर पूर्वी तट पर ईशानकोण में भीमाशंकर महादेव काशीवासियों को दर्शन देते हैं। काशी के इस मंदिर में त्रिकाल संध्या का विधान आज भी पारंपरिक रूप से निभाया जाता है।सड़क से 30 फीट और ज्ञानवापी से 16 फीट नीचे भीमाशंकर महादेव के दर्शन होते हैं।

मंदिर के महंत डॉ. दिनेश शंकर उपाध्याय ने बताया कि मुगल काल में इस लिंग की रक्षा के लिए जमीन को उठाया गया था और अगल-बगल भवन तैयार किए गए थे। काशी के चंद शिवलिंगों में यह शामिल है जो आज भी अपने मूल स्थान पर स्थापित हैं। 

कई बार मुगलों ने आक्रमण किया, ज्ञानवापी को नष्ट किया। उन्होंने भीमाशंकर महादेव पर भी आक्रमण किया था लेकिन ब्राह्मणों ने बलिदान देकर इसकी रक्षा की। यह क्षेत्र मृत्यु के लिए काशी के गुप्त सर्वश्रेष्ठ क्षेत्रों में से एक है। प्राचीन समय में यहां देश भर से लोग प्राण त्यागने के लिए आते थे और इसे काशी करवत के नाम से जाना जाता था। इसके अतिरिक्त यहां भीमकुंड हैं जिसमें स्नान करके भीमेश्वर और भीमचंडी का दर्शन करने से यमराज का भी भय नहीं रहता है। 

पुजारी के अलावा किसी अन्य को गर्भगृह में प्रवेश की अनुमति नहीं है। ऊपर से ही भक्त यहां पर दर्शन पूजन करते हैं। सावन भर रोजाना यहां महादेव का सवा लाख बेलपत्रों से बिल्वार्चन होता है। मंदिर के महंत डॉ. उपाध्याय ने बताया कि काशी खंड अध्याय 69 में भीमाशंकर महादेव का वर्णन मिलता है। भगवान विश्वनाथ के साथ स्वयं काशी में आए थे और यहीं पर विराजमान होकर भक्तों को मुक्ति का वरदान देते हैं। 

महादेव ने अपने भक्त की रक्षा के लिए कुंभकर्ण के पुत्र भीम के साथ राक्षसों का नाश किया था। उसके बाद वह भक्तों के भयंकर पापों को नष्ट करने के लिए भीमाशंकर के रूप में विराजमान हो गए।

भोग और मोक्ष रूप में विराजमान हैं भीमाशंकर

सप्तगोदवारी तीर्थ पुणे महाराष्ट से भगवान भीमेश्वर प्रभु यहां मनुष्यों के भोग और मोक्ष के लिए लिंगरूप में विराजमान हैं। नकुलीश्वर के पूर्वभाग में भीमेश्वर प्रभु के दर्शन करने से बड़े भयंकर पाप भी तुरंत नष्ट हो जाते हैं। भीमेश्वर के सम्मुख ही पाश और मुद्गर को धारण कर भगवती भीमचंडी देवी उत्तरद्वार की सदैव रक्षा करती रहती हैं। जो मानव भीमकुंड में स्नान कर भीमचंडी देवी का दर्शन करता है, यमराज के दूत भी उससे दूर रहते हैं।