वाराणसी :: साठे के जुलूस में दर्द भरे नौहों पर छलक उठीं आंखें, गम-ए-हुसैन के आखिरी दिन जंजीर का मातम...
वाराणसी, ब्यूरो। गम-ए-हुसैन के अंतिम दिन साठे के जुलूस में हर आंख अश्कबार हो उठी। दर्द भरे नौहों और करबला के वाकियात सुनकर जायरीन की आंखों से आंसू थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे। साठे का जुलूस दालमंडी से निकला और इसी के साथ दो महीने आठ दिन के गम का सिलसिला खत्म हो गया। बृहस्पतिवार को या हुसैन... की दर्द भरी सदाओं के बीच पुरानी अदालत दालमंडी स्थित शब्बीर और सफदर के अजाखाने से निकले जुलूस में शहीदाने करबला को आंसुओं का नजराना पेश किया गया। जुलूस में शामिल अलम, दुलदुल, तुरबत और आमारी की जियारत की गई।
रास्ते भर अंजुमन हैदरी के दर्द भरे नौहे अकीदतमंदों की आंखें नम करते रहे। जुलूस नई सड़क काली महल पहुंचा तो यहां लोगों ने आमारी का इस्तकबाल किया। जुलूस नौहा और मातम करता हुआ दरगाह-ए-फातमान पहुंचा। यहां अलविदाई मजलिस हुई।
घरों व इमामबाड़ों में होंगी महफिलें
मजलिस को खिताब करते हुए लखनऊ के मौलाना इरशाद अब्बास नकवी ने कहा कि इमाम हुसैन और उनके 71 साथियों को शहीद करने के बाद यजीद के हुक्म पर उनकी औरतों, बच्चों और बीमार बेटे को पैदल करबला से कूफा और कूफा से शाम तक ले जाया गया। यजीदी फौज ने बच्चों और औरतों की गर्दनी रस्सी से बांध दी थी।
औरतें उठती थीं तो बच्चों का गला कसने लगता था और वो दर्द से तड़प उठते थे। बच्चों को दर्द से बचाने के लिए औरतों ने 3590 किमी का सफर कमर झुकाकर पूरा किया। यही नहीं यदि कोई औरत या बच्चा चलते चलते रुक जाता था तो उसे कोड़ों से मारा जाता था। मौलाना की तकरीर सुनकर वहां मौजूद लोग बिलख पड़े। शिया जामा मस्जिद के प्रवक्ता हाजी फरमान हैदर ने बताया कि इमाम हसन असकरी की शहादत पर ताबूत भी उठाया गया। आखिर में असकरी रजा सईद ने शुक्रिया अदा किया।