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मुंबई में दो बड़े मॉल का मालिक बना संत, अब देवी साधना में लीन, नवरात्र में गर्दन से पैर तक खुद को रखते हैं जमीन के अंदर...

मुंबई में दो बड़े मॉल का मालिक बना संत, अब देवी साधना में लीन, नवरात्र में गर्दन से पैर तक खुद को रखते हैं जमीन के अंदर...

राज्य, ब्यूरो। मध्य प्रदेश के खरगोन में नवरात्र पर एक संत की अनोखी साधना देखी गई। बाबा गर्दन से खुद को पैर तक शरीर को जमीन के अंदर किया और सिर के ऊपर जवारे बो लिए हैं। सात दिन से अन्न-जल त्याग कर यह कठोर तपस्या जारी है.दशहरे के दिन समापन होगा।

खरगोन जिला मुख्यालय से करीब 60 किमी दूर महेश्वर विकासखंड के करौंदिया गांव में 50 वर्षीय गुजराती बाबा ने नवरात्रि पर अनोखी साधना कर रहे हैं। यह तपस्या दशहरे तक चलेगी और इस दौरान बाबा अन्न-जल त्याग कर देवी की उपासना में लीन हैं। दरअसल, बाबा ने यहां जवारा समाधि ली है। इस समाधि में शरीर को मिट्टी में दबाकर उस पर गेहूं के ज्वारे बोए जाते हैं। बाबा बताते हैं कि मां भगवती की कृपा से 100 किलोमीटर तक के खेतों में ज्वारों की हरियाली बनी रहती है।

जगत कल्याण के लिए समाधि

श्रद्धालुओं ने बताया बाबा इस अनोखी साधना के माध्यम से जगत कल्याण, व्यसन मुक्ति और सनातन धर्म की एकता के लिए देवी आराधना कर रहे हैं। 3 अक्टूबर को हवन पूजन के बाद यह समाधि ली थी, जो 12 अक्टूबर को दशहरे के दिन पूरी होगी। बाबा, समाधि के दौरान केवल एक-दो चम्मच पानी पीते हैं ताकि शरीर की नसें सूख न जाएं।

33 साल से देवी साधना में लीन

गुजराती बाबा का नाम जगदीशानंद गुरु कल्याणदास महाराज है। वे पिछले 33 वर्षों से देवी साधना में लीन हैं। बाबा अब तक देशभर में 24 से 25 समाधियां ले चुके हैं, हिमालय से शुरुआत हुई और गुजरात, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी समाधि ली है। बाबा का लक्ष्य है कि वे देश के हर राज्य में तीन समाधियां लें.बाबा का जीवन दिलचस्प
गुजराती बाबा का असल जीवन भी बेहद दिलचस्प है। वे मूल रूप से गुजरात के रहने वाले हैं और मुंबई में दो बड़े मॉल के मालिक थे। लेकिन देवी भक्ति में ऐसा रम गए कि सब कुछ छोड़कर हिमालय चले गए। साधु बनने के बाद वे वापस लौटे और देशभर में यात्रा कर सनातन धर्म और व्यसन मुक्ति के लिए जागरूकता फैलाने लगे।

मंदिर निर्माण के साथ जुड़ा उद्देश्य

करौंदिया गांव में गुजराती बाबा ने जिस स्थान पर समाधि ली है, वहां खाटू श्याम का भव्य मंदिर निर्माणाधीन है. खेत में 4×10 के 3 फ़ीट गहरे गड्ढे में बाबा को लिटाकर मिट्टी डालकर समाधि दी गई है. केवल मुंह खुला है और आसापास माता के जवारे लगाए हैं।

ग्रामीणों ने करीब साढ़े चार करोड़ की लागत से मंदिर बनवाने का बीड़ा उठाया है। बाबा को ये स्थान बहुत पसंद आया और मंदिर निर्माण के लोगों से जुड़ने के लिए उन्होंने यहीं खेत में समाधि लेने का फैसला किया। इससे पहले उन्होंने चैत्र नवरात्रि में बारहद्वार हनुमान मंदिर में समाधि ली थी और फिलहाल वहीं पर निवास भी कर रहे हैं।

साल में दो बार समाधि लेते हैं बाबा

गांव के श्रद्धालु अश्विन पाटीदार का कहना है कि संत को गुजराती बाबा के नाम से जाना जाता है। गुरुदेव साल में दो बार समाधि लेते हैं। इसे जवारा समाधि भी कहते हैं। चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र में समाधि लेते हैं। इस दौरान में पूरा शरीर मिट्टी के अंदर रखते हैं और केवल मुंह बाहर रहता है। गुरुदेव समाधि के दौरान दिन में केवल एक से दो बूंद जल ग्रहण करते हैं। गुजराती बाबा मां दुर्गा और इष्ट देव काल भैरव की साधना करते हैं।