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वाराणसी में कड़ी सुरक्षा के बीच हुआ मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन, मां दुर्गा की विदाई के पहले सिंदूर खेला का रस्म महिलाओं ने निभाया

वाराणसी में कड़ी सुरक्षा के बीच हुआ मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन, मां दुर्गा की विदाई के पहले सिंदूर खेला का रस्म महिलाओं ने निभाया

-मां दुर्गा की विदाई से पहले सिंदूर खेला की रस्म महिलाओं ने निभाई, सुहागिनों ने माता को चढ़ाए गए सिंदूर को एक दूसरे को लगाया।

वाराणसी, 14 अक्टूबर। काशीपुराधिपति की नगरी में कड़ी सुरक्षा के बीच लगातार तीसरे दिन सोमवार को मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन किया गया।शहर के विभिन्न पूजा पंडालों में स्थापित मां दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन बीते शनिवार और रविवार को भी हुआ। शेष बची प्रतिमाओं का विसर्जन देर शाम तक होता रहेगा। इसके पहले बंगीय पूजा पंडालों में महिलाओं ने मां दुर्गा की विदाई से पहले सिंदूर खेला की रस्म निभाई।

बंगीय पूजा पंडालों में सुहागिन महिलाओं ने माता रानी को चढ़ाए गए सिंदूर से जमकर होली खेली। चेतसिंह किला परिसर में बीडीएस क्लब की ओर से स्थापित मां की प्रतिमा को महिलाओं ने पूजन अर्चन के बाद सिंदूर चढ़ाया और प्रतीक रूप से उन्हें मिठाई खिलाई। इसके बाद धुनुची नृत्य में महिलाओं ने बढ़-चढ़कर भागीदारी की। फिर विसर्जन यात्रा निकाली गई। 

रविवार को भी भेलूपुर और दशाश्वमेध क्षेत्र के बंगीय पूजा पंडालों में बैंड बाजे की धुन पर थिरकती हुई महिलाओं ने सिंदूर खेला की रस्म भी निभाई। बंग समाज में मान्यता है कि मां दुर्गा शारदीय नवरात्र के दौरान मायके आती हैं और 10 दिन रुकने के बाद फिर वापस ससुराल जाती हैं। मां भगवती के सम्मान में दुर्गा पूजा का उत्सव मनाया जाता है। इस दौरान मां दुर्गा को बेटी जैसा प्यार और दुलार दिया जाता है। 

समाज की बेटी की तरह माता रानी को प्रतीक रूप से विदाई के लिए तैयार किया जाता है। सुहागिन महिलाएं मां को मिठाई, दही प्रतीक रूप से खिलाती हैं। उन्हें चुड़ी पहनाती हैं और सिंदूर लगाती हैं। बेटी के पहली बार ससुराल जाने की पूरी रस्म निभाई जाती है। विदाई (विसर्जन) के समय महिलाओं के आंखों की कोर गीली हो जाती है।