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काशी में अस्ताचलगामी सूर्य को व्रती महिलाओं ने दिया पहला अर्घ्य, गंगा घाटों, कुंड और तालाबों पर आस्था का सैलाब,पारंपरिक छठगीतों की गूंज

काशी में अस्ताचलगामी सूर्य को व्रती महिलाओं ने दिया पहला अर्घ्य, गंगा घाटों, कुंड और तालाबों पर आस्था का सैलाब,पारंपरिक छठगीतों की गूंज

वाराणसी, ब्यूरो 7 नवम्बर। काशीपुराधिपति की नगरी में लोक आस्था के महापर्व डाला छठ (सूर्य षष्ठी) पर गुरूवार को व्रती महिलाओं और उनके परिजनों ने अस्ताचलगामी भगवान भास्कर की आराधना की। 36 घंटे का निर्जला व्रत रख लाखों व्रती महिलाओं के साथ उनके परिजनों ने चार दिवसीय लोक पर्व में तीसरे दिन पूरे आस्था और विश्वास के साथ अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को दूध और जल का पहला अर्घ्य दिया।

साफ-सफाई और शुद्धता से बने विविध पकवानों और मौसमी फलों से सजे सूप के आगे से अर्घ्य देकर महिलाओं ने भगवान सूर्य और छठी मइया से परिवार में मंगल, वंश वृद्धि, संतति की कामना की। इस दौरान गंगा घाटों सहित सरोवरों, कुंडों, जलाशयों पर महिलाओं, पुरुषों व बच्चों की भारी भीड़ जुटी रही। 

अर्घ्य देने के पूर्व गंगा घाटों पर व्रती महिलाएं जहां वेदी का पूजन कर फल से भरे बांस के सूप को हाथ में लेकर कमर या घुटने भर पानी में खड़ी होकर भगवान सूर्य की मौन उपासना कर रही थीं। वहीं, उनके साथ आईं महिलाएं छठी मइया का परम्परागत गीत 'कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए, उजे केरवा जे फरेला घवद से ओ पर सुग्गा मेरराय, मोरा घाटे दुबिया उपजि गइले' आदि गा रही थी। 

गंगा घाटों पर सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद घर लौटते समय व्रती महिलाएं सूप, दउरी में अल्पनाओं से सजे कलश पर जलता हुआ दीया लिए हुए थी। सड़क पर भीड़ के धक्के से दीपक को बचाने के लिए परिवार के अन्य सदस्य व्रती महिलाओं के चारों ओर घेरा बना कर चल रहे थे। सूर्योपासना के इस महाव्रत का पारण शुक्रवार तड़के उदयाचलगामी सूर्य को अन्तिम अर्घ्य देने के बाद होगा।

इसके पूर्व दोपहर बाद से ही गंगा तट, कुंड सरोवरों पर कठिन उपवास रख व्रती महिलाएं समूह में परिजनों के साथ छठ मइया की पारम्परिक गीत गाते हुए गाजे बाजे के साथ पहुंचने लगीं। परिजन भी लाल और पीले कपड़ों की पोटली में रखे डाल दउरी (पूजन सामग्री, फल, फूल) सिर पर रख उनके साथ चल रहे थे। इस दौरान बच्चों और युवाओं का आस्था और जोश देखते बन रहा था। 

घाट पर पहुंचने के बाद व्रती महिलाओं ने वेदियों पर हल्दी से शुभ के प्रतीक बनाए । गन्ने के मंडप के नीचे 5, 11, 21 दीये जला वेदी पूजन के साथ छठ मईया की विधिवत पूजा की। इसके बाद अनार, सेब, संतरा, केला, अन्नानास, नारियल, चना, ठेकुआ भोग के रूप में अर्पित किया। इसके बाद एक दीप गंगा मईया और एक दीप भगवान भास्कर को अर्पित किया। फिर गंगा नदी, कुंडों में कमर भर पानी में जाकर खड़ी हो गईं। 

व्रती महिलाओं ने पूरे आस्था के साथ भगवान सूर्य देव के डूबने का इंतजार किया। आसमान में पश्चिम दिशा की ओर डूबते सूर्य की लालिमा दिखी तो व्रतियों ने उन्हें अर्घ्य दिया। जिले के ग्रामीण अंचलों में भी व्रतियों ने अर्घ्य देकर नारियल, सेव, केला, घाघरा निंबू, ठेकुंआ भगवान को समर्पित किया। छठी मइया की विधिवत पूजा के बाद मन्नत पूरी होने पर महिलाओं ने कोसी भी भरी। इसमें उनके परिवार, रिश्तेदार और परिचित शामिल हुए।

महापर्व पर सामनेघाट, अस्सीघाट, तुलसी घाट, हनुमान घाट से लेकर मान सरोवर पांडेय घाट, दरभंगा घाट, मीरघाट, सिंधिया घाट, गायघाट, भैसासुर तक सिर्फ छठी मइया के भक्त नजर आ रहे थे। सर्वाधिक भीड़ दशाश्वमेध घाट, अस्सी घाट, पंचगंगा, सामने घाट, विश्व सुंदरी पुल, डुमरी घाट के पास रही। इस दौरान गंगा घाटों पर 11 एनडीआरफ, जल पुलिस भी चौकस नजर आई। 

इस पर्व पर बीएलडब्ल्यू स्थित सूर्य सरोवर, सूरज कुंड, लक्ष्मीकुंड, ईश्वरगंगी तालाब, पुष्कर तालाब, संकुलधारा पोखरा, पिशाचमोचन तालाब, रामकुंड के साथ घरों और कालोनियों में बने अस्थाई कुंडों पर अर्घ्यदान के लिए व्रती महिलाएं और उनके परिजन जुटे रहे। इन कुंडों तालाबों के आसपास आकर्षक सजावट भी की गई थी। गंगा तट और सूर्य सरोवर के आसपास विभिन्न सामाजिक संगठनों की ओर से सहायता एवं सेवा शिविर भी लगाए गए थे।

हजारों महिलाएं घाट पर पूरी रात रहेंगी

धर्म एवं आस्था की नगरी काशी में डाला छठ के तीसरे दिन गुरूवार को गंगा तट पर पहुंची हजारों महिलाएं अस्ताचलगामी भगवान भास्कर को अर्घ्य देने के बाद घाटों पर ही रुक गईं। लगभग 36 घंटे तक निराजल रहने वाली व्रती महिलाएं पूरी रात गंगा तट पर खुले आसमान के नीचे रात्रि जागरण कर भजन कीर्तन के बीच शुक्रवार तड़के उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर घर लौटेंगी। घाटों पर महिलाओं के इस आस्था और विश्वास को देख हर कोई इनके प्रति आदर का भाव दिखा रहा था। अर्घ्य देने के बाद घरों में भी तमाम व्रती महिलाएं वेदियों के पास रात भर छठ माता की आराधना कर जागरण करेंगी। बताते चले छठ की शुरूआत मंगलवार को नहाए-खाए के साथ हुई। बुधवार को खरना का रस्म निभाया गया।