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भाई के स्वस्थ और दीर्घ जीवन के लिए बहनों ने मुसल से कूटा गोधन चक्र-पारम्परिक गीत 'गोधन भइया चलले अहेरिया,खिलिच बहिना ली आशिष जिउसहू मोरा भइया' की गूंज...

भाई के स्वस्थ और दीर्घ जीवन के लिए बहनों ने मुसल से कूटा गोधन चक्र-पारम्परिक गीत 'गोधन भइया चलले अहेरिया,खिलिच बहिना ली आशिष जिउसहू मोरा भइया' की गूंज...

-पारम्परिक गीत 'गोधन भइया चलले अहेरिया, खिलिच बहिना दे ली आशिष, जिउसहू मोरा भइया' की गूंज

वाराणसी, ब्यूरो 2 नवम्बर। धर्म नगरी काशी में शनिवार को भाई और बहन के पवित्र रिश्ते को प्रगाढ़ बनाने का पर्व भैयादूज उत्साह से मनाया गया। कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई के स्वस्थ और दीर्घ जीवन, श्री समृद्धि के लिए उत्साहित बहनों ने प्रातःकाल व्रत रह कर गांव, कस्बे और शहर के मोहल्लों, कालोनियों के गलियों और घर के बाहर समूह में साफ सफाई के बाद गाय के गोबर से गोधन चक्र बनाया। इसके बाद उसमें बने आयु चक्र में गूंग भटकइयां और अन्य पूजन सामग्री रख सज धज कर मूसल से गोधन कूटा।

इस दौरान मोहल्ले या घर की बुजुर्ग महिलाओं की देखरेख में परम्परानुसार गोधन के 'गोधन भइया चलले अहेरिया, खिलिच बहिना दे ली आशिष, जिउसहू मोरा भइया, जिय भइया भैया दूज' आदि पारम्परिक गीत गाया गया। इसके बाद बहनों ने अपनी जीभ पर गोधनचक्र पर रखे गूंग भटकइयां के कांटे को छुआकर भाइयों के सलामती के लिए गोवर्धन भगवान से गुहार लगाई। 

इसके बाद घर आकर विवाहित और कुंवारी बहनों ने भाइयों की आरती उतार कर माथे पर तिलक लगाया। उनकी लंबी आयु की कामना कर मिठाष्न और प्रसाद खिलाया। भाइयों ने उनकी रक्षा का संकल्प लेकर अपने सामर्थ्य के अनुसार उपहार दिया। इस पर्व पर कुंआरी और विवाहित बहनों में जबरदस्त उत्साह रहा। वहींं, नन्हें बच्चों में भी पर्व का खासा उत्साह देखने को मिला। त्योहार पर बाजारों में रौनक रही। कैंट स्टेशन, रोडवेज बस स्टैंड, निजी बस स्टैंड पर भी विवाहित बहनों की काफी भीड़ मायके आने-जाने के लिए जुटी रही।

भाईदूज पूजा के पीछे की पौराणिक कथा

उल्लेखनीय है कि इस पर्व को मनाने के पीछे एक पौराणिक कथा है। छाया भगवान सूर्यदेव की पत्नी हैं। उनकी दो संतान हुईं यमराज तथा यमुना। यमुना अपने भाई यमराज से बहुत स्नेह करती थी। वह उनसे सदा यह निवेदन करती थीं कि वे उनके घर आकर भोजन करें लेकिन यमराज अपने काम में व्यस्त रहने के कारण यमुना की बात को टाल जाते थे। एक बार कार्तिक शुक्ल द्वितीया को यमुना ने अपने भाई यमराज को भोजन करने के लिए बुलाया तो यमराज मना न कर सके और बहन के घर चल पड़े। रास्ते में यमराज ने नरक में रहने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। भाई को देखते ही यमुना बहुत हर्षित हुईं और भाई का जमकर स्वागत सत्कार किया। यमुना के प्रेम मनुहार और स्वादिष्ट भोजन ग्रहण करने के बाद प्रसन्न होकर यमराज ने बहन से कुछ मांगने को कहा। यमुना ने उनसे मांगा कि आप प्रति वर्ष इस दिन मेरे यहां भोजन करने आएंगे और इस दिन जो भाई अपनी बहन से मिलेगा और बहन अपने भाई को टीका लगाकर भोजन कराएगी, उसे आपका डर न रहे। यमराज ने यमुना की बात मानते हुए तथास्तु कहा और यमलोक चले गए। 

तभी से यह यह मान्यता चली आ रही है कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीय को जो भाई अपनी बहन का आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यमराज का भय नहीं रहता। उधर, तिथियोें के फेर के चलते कुछ बहनों ने भैयादूज पर्व रविवार को भी मनाएंगे। गोवर्धन पूजा की बेदी पर बहनें मिठाई, चना और गूंग भटकइया का पौधा रखती हैं तथा इसके पूर्व वह उसको काफी श्राप देती हैं। ऐसी मान्यता है कि पूजा के बाद यह सारा श्राप, वरदान के रूप में बदल जाता है।