Headlines
Loading...
आज महान पुण्यात्मा की तेरहवीं पर विशेष :: क्या आप जानते हैं? तेरहवीं का खाना खाने से लगता है पाप? जानें गरुड़ पुराण और गीता में क्या लिखा है...

आज महान पुण्यात्मा की तेरहवीं पर विशेष :: क्या आप जानते हैं? तेरहवीं का खाना खाने से लगता है पाप? जानें गरुड़ पुराण और गीता में क्या लिखा है...


आज हमारी प्रिय सासू मां की भी तेरहवीं है, इस  अवसर पर मैं और मेरी टीम "केसरी न्यूज नेटवर्क मीडिया" इनके जैसी विलक्षण पुण्यात्मा को एक शोक-सभा श्रद्धांजलि न्यूज चैनल रीजनल हेडऑफिस लखनऊ अलीबाग में अर्पित करता है। साथ ही पूर्वांचल हेड ऑफिस पड़ाव में भी एक शोक सभा आयोजित कर महान पुण्यात्मा को काफी लोगों ने श्रद्धांजलि अर्पित किया। और सभी ने ईश्वर से प्रार्थना किया है कि, सीधे इन्हें स्वर्ग में जगह दें।

ओम शांति... ओम शांति... ओम शांति 
AK.KESHARI*****

अब आपको गरुड़ पुराण में व्यक्त किए गए तेरहवीं के बारे में आपको बताते हैं। 

Garud Puran: हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद मृतक की आत्मा की शांति के लिए तेरहवीं भोज की परंपरा का पालन किया जाता है। इसे ब्रह्मभोज के रूप में जाना जाता है, लेकिन समय के साथ इसे मृत्यु भोज कहा जाने लगा है। इस परंपरा को लेकर समाज में विभिन्न धारणाएं प्रचलित हैं, खासकर तेरहवीं के भोजन को लेकर।

गरुड़ पुराण और महाभारत के अनुशासन पर्व में तेरहवीं भोज और मृत्यु भोज को लेकर विस्तृत चर्चा है। इन ग्रंथों में बताया गया है कि यह भोजन कब, किन परिस्थितियों में और किनके लिए किया जाना चाहिए। साथ ही, यह भी समझाया गया है कि इसका पालन करते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए।

गरुड़ पुराण में क्या लिखा है?

गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा तेरह दिनों तक अपने परिवार और घर के सदस्यों के बीच रहती है। तेरहवें दिन ब्रह्मभोज कराने से मृत आत्मा को परलोक की यात्रा में मदद मिलती है। गरुड़ पुराण में उल्लेख है कि मृत्यु भोज का उद्देश्य केवल जरूरतमंदों और ब्राह्मणों को भोजन कराना है। यह उनके लिए पुण्यकारी माना गया है। लेकिन यदि कोई संपन्न व्यक्ति तेरहवीं का भोजन करता है, तो इसे गरीबों का हक छीनने जैसा अपराध माना गया है।

महाभारत में मृत्यु भोज का जिक्र

महाभारत के अनुशासन पर्व में मृत्यु भोज को लेकर सावधान किया गया है। इसमें कहा गया है कि मृत्यु भोज खाने से व्यक्ति की ऊर्जा और सकारात्मकता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। एक बार दुर्योधन ने श्रीकृष्ण को भोज पर आमंत्रित किया, लेकिन श्रीकृष्ण ने मना कर दिया। उन्होंने कहा, "सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः" अर्थात, जब खिलाने वाले और खाने वाले दोनों का मन प्रसन्न हो, तभी भोजन करना चाहिए।