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काशी की जनता बोले :: देवदीपावली आयोजन समितियों ने कहा..असंतोष-उत्पीड़न से हमें राहत चाहिए, दिए व तेल प्रचुर मात्रा में भी नहीं मिलते..

काशी की जनता बोले :: देवदीपावली आयोजन समितियों ने कहा..असंतोष-उत्पीड़न से हमें राहत चाहिए, दिए व तेल प्रचुर मात्रा में भी नहीं मिलते..

वाराणसी, जिला ब्यूरो। बनारस के पर्यटन मानचित्र को देश-दुनिया में नई चमक के साथ जिसने स्थापित किया, शिवनगरी की आर्थिकी को जिससे बूस्टर डोज मिलती है और जो सैकड़ों लोगों के चेहरे से बेरोजगारी का तनाव दूर करता है, उस देवदीपावली महोत्सव की इस वर्ष भी तैयारियां शुरू हैं। इनके बीच आठ किलोमीटर क्षेत्र में फैले 84 घाटों पर सक्रिय आयोजन समितियों के असंतोष की तेज हवा चल पड़ी है। वह अनदेखा करने लायक नहीं है। उसके प्रति एक सकारात्मक पहल जरूरी है जो देवों की दीपावली को चमकदार ही बनाएगी। 

देवदीपावली का मौजूदा स्वरूप एक दिन में नहीं बना। ठीक एक इमारत की तरह पंचगंगा घाट पर उसकी नींव तैयार हुई। नींव की ईंटें दरक न जाएं, इसका विशेष ध्यान रखा गया। आज महोत्सव की चकाचौंध में जानना जरूरी है कि सन-1986 में मंगलागौरी मंदिर के महंत नारायन गुरु के नेतृत्व में तब के युवा, अब केन्द्रीय देवदीपावली महासमिति के अध्यक्ष वागीशदत्त मिश्र एवं उनके कुछ हमउम्र साथियों ने गलियों में घर-घर से तेल-घी जुटाकर दशकों से सुप्त एक उज्ज्वल परंपरा को पुनजीर्वित करने का उद्यम शुरू किया था। तब उन उत्साही युवकों को आभास नहीं था कि कार्तिक पूर्णिमा को चंद घाटों पर जलने वाले वाले दीयों से एक दिन काशी की उत्सवधर्मिता दुनिया में आलोकित होगी। 

वर्ष-प्रतिवर्ष उत्सव का घाट से घाट विस्तार हुआ। व्यवस्थित आयोजन के लिए घाटों पर समितियां गठित होती गईं। उनके सदस्यों का उत्साह, समर्पण और परिश्रम ही है जिसने देवदीपावली के रूप में दीयों की शक्ति-सामर्थ्य से दुनिया को आकर्षित किया है। शासन-प्रशासन के सहयोग से निश्चित ही आयोजन को भव्यता मिलती गई लेकिन यह भी सच्चाई है कि आयोजन समितियों के पदाधिकारी और सदस्य प्रशासन, पुलिस की कार्यशैली से न सिर्फ असंतुष्ट हैं बल्कि खुद को उत्पीड़ित भी महससू कर रहे हैं। 

अस्सी घाट पर जुटे उन लोगों ने मीडिया के साथ अपना दर्द साझा किया बल्कि महोत्सव को और सुव्यवस्थित बनाने के लिए सुझाव भी दिए।

प्रशासन के कारण खुद नहीं पहुंच पाते घाट पर

आचार्य वागीशदत्त मिश्र, प्रभात शाही, श्रवण मिश्र ने कहा कि बहुत से लोगों ने महोत्सव के सफल आयोजन के लिए घरों के गहने बेच दिए, जमीन गिरवी रख दी। वे आज खुद को आयोजन में सबसे पीछे, उपेक्षित और ठगा हुआ महसूस करते हैं क्योंकि पूरी तैयारियों के बाद ऐन वक्त पर पुलिस उन्हें ही घाटों से दूर कर देती है। वे अपने अतिथियों को भी गंगा तट तक नहीं पहुंचा पाते। वे घाट के ऊपर किसी इमारत के झरोखे, उसकी छत या बरामदे से भरी आंखें और बोझिल हृदय लिये महोत्सव के साक्षी बनते हैं।

समिति सदस्यों को जारी हो पहचानपत्र

केन्द्रीय देवदीपावली महोत्सव महासमिति पिछले कई वर्षों से प्रशासन के साथ बैठकों में मांग उठाती रही है कि घाटों की आयोजन उपसमितियों को पहचान पत्र जारी करने का अधिकार दिया जाए। वागीशदत्त मिश्र ने कहा कि प्रशासन या पर्यटन विभाग चाहे तो संख्या तय कर दे लेकिन सदस्यों को पहचान पत्र तो मिलना ही चाहिए। आरपी घाट के आयोजक विजयशंकर भारद्वाज समेत कई सदस्यों ने कहा कि समितियों के सदस्य पुलिस के सहयोगी ही बनेंगे क्योंकि सभी उत्सव को भव्यतम बनाने के लिए लालायित रहते हैं।

जाति पंथ अनेक, सनातनी एक

केंद्रीय देवदीपावली महासमिति ने काशी के सर्व समाज को इस आयोजन से जोड़ा है। अध्यक्ष आचार्य वागीशदत्त मिश्र कहते हैं कि देवदीपावली भगवान शंकर से जुड़ा त्रिपुरोत्सव है। भगवान बुद्ध का संबंध देवदीपावली से है। सारनाथ में उस दिन दर्शन का कार्यक्रम होता है। उसी दिन गुरु नानकदेव का प्रकाशपर्व मनाया जाता है। हमने बौद्धों, सिखों, कबीरपंथियों, रविदासियों को जोड़ कर इसे सनातन का महाउत्सव बनाने का प्रयास किया है। देवदीपावली के निमित्त हमारा सूत्र वाक्य है-'जाति पंथे अनेक हम सनातनी एक।

प्रशासन 15 देता है तो जनता 30 देती है 

अस्सी घाट की उप समिति से जुड़े श्रवण मिश्र ने कहा कि प्रशासन 15 लाख दीपक उपलब्ध कराता है जबकि उससे दूनी संख्या में दीपक काशी की जनता के सहयोग से प्रज्ज्वलित किए जाते हैं। कार्यकर्ता मेहनत करके व्यवस्था बनाता है कि लोग आएंगे, अतिथि के रूप में आयोजन देखेंगे, आनंदित होंगे लेकिन कार्यकर्ता और उसके परिजन ही सुरक्षा के नाम पर उस आनंद से वंचित कर दिए जाते हैं। यह उचित नहीं है।

बीते साल दिया गया था घटिया तेल

प्रभात शाही उस परिवार से जुड़े हैं जिनके धर्मप्राण पूर्वजों ने भदैनी और जानकी घाट बनवाया था। प्रभात ने बताया कि भदैनी घाट के बगल में ढलान का रखरखाव नहीं हो रहा है। वहां बहुत से पौधे उग आए हैं। उस कारण वहां दो साल से दीयों की सजावट नहीं हो रही है। भीड़ नियंत्रण का समुचित प्रबंध नहीं होता। सबसे बड़ी बात, पिछले साल मिला तेल बहुत खराब था। उससे इतना अधिक काला धुआं उठा कि 30 मीटर के आगे कुछ दिख नहीं रहा था। उस पार होने वाली आतिशबाजी और उस पार के दीये भदैनी से नहीं दिखे।

वीआईपी न बन जाए यह आयोजन

बूंदीपरकोटा घाट के घनश्याम सिंह के मुताबिक स्थानीय समितियों के अध्यक्षों को पहचान पत्र जारी करने का अधिकार देने की वर्षों से मांग की जा रही है। अगर वीआईपी के लिए आयोजन हो रहा है तो समूचा प्रबंधन सरकार ही करे। हम लोगों को हटा दिया जाए। फिर पूरी दुनिया देख लेगी कि कितने दीपक जलते हैं। सरकार को पर्यटन से खूब आमदनी हो रही है जबकि हमें सड़ा हुआ तेल मिलता है।

पुलिस का रवैया ठीक नहीं होता है 

डॉ. राजेंद्र प्रसाद घाट पर देवदीपावली का आयोजन करने वाली उप समिति के विजय शंकर भारद्वाज ने कहा कि सबसे अधिक भीड़ दशाश्वमेध घाट पर होती है। सामान्य से विशिष्ट जन तक का फोकस यहीं होता है। मगर प्रशासन का रवैया तानाशाह जैसा होता है। तीन बजे से ही पुलिस रास्ता बंद कर देती है। समिति के लोग घाट तक आ नहीं पाते हैं। उन्होंने कहा कि तेल की मात्रा बढ़ाई जाए ताकि हम उस पार भी दीपक रोशन कर सकें। लाइटिंग की व्यवस्था भी होनी चाहिए ताकि लोगों को दिक्कत न हो।

आश्वासन से बहुत उम्मीद नहीं

रामनगर के शास्त्री घाट पर देवदीपावली का आयोजन करने वाली समिति के सदस्य नीरज द्विवेदी 'डंडा गुरु ने बताया कि रामनगर में 2005 में श्रीनारायण द्विवेदी ने महोत्सव की शुरुआत की। हमें प्रशासन का पूरा सहयोग नहीं मिलता। पिछले दो साल से एक हजार दीपक शासन से मिल रहे हैं जबकि नौ हजार दीपक हम खुद जुटाते हैं। शास्त्री घाट पर अब भी मिट्टी जमी है। अधिकारियों से आश्वासन मिला है लेकिन मुझे नहीं लगता कि प्रशासन सभी व्यवस्था समय से करा पाएगा। भीड़ नियंत्रित करने के लिए प्रशासन का सहयोग चाहिए। वहां आरती के पात्र रखने की जगह नहीं है।

पदाधिकारियों का सचित्र कोट-

सावन में गिरा बिजली का खंभा अब तक पड़ा है। सवारी के चक्कर में नाविक विवाद करने लगते हैं। उन पर प्रशासन द्वारा नियंत्रण की जरूरत है।
-महेश तिवारी, केदार घाट

देवदीपावली सिर पर आ जाती है, तब प्रशासन सक्रिय होता है। घाटों से जुड़ी गलियों की मरम्मत भी जरूरी है।
- बलराम मिश्र, अस्सी घाट

हमें बताया जाता है कि पांच सौ दीए हैं, लेकिन मिलते हैं ढाई या तीन सौ ही दीए। हम सब मिलकर दूसरों के सहयोग से तेल-दीयों की व्यवस्था करते हैं।
-सीता केशरी, शीतला घाट

नगर निगम द्वारा घाटों पर पर्याप्त सफाई नहीं होती। हम सफाई करें या देवदीपावली का खाका तैयार करें। यह दुविधा हर साल बढ़ती जा रही है।
-अर्चना जोशी, बूंदी परकोटा घाट

हमारे घाट पर आधी सफाई के बाद पंप दूसरे घाट पर चला गया। जहां पर आरती-पूजा होती है वहीं एक नाला बह रहा है। यही सच्चाई है।
-गुप्तेश्वर चौधरी, हरिश्चंद्र घाट

रीवां और गंगा महल घाट पर सीवर का पानी बहता है जो लोगों की परेशानी का सबब है। उसे ठीक कराना जरूरी है।
-अमित चौहान, रीवां घाट

पिछले 13 वर्षों से नाले की समस्या लगातार बनी है। घाट के ऊपर से दुकानों और होटलों का मलजल सीढ़ियों पर गिरता है। और वहीं मलजल मां गंगा में गिरता है।
-सुरेश कुमार शुक्ला, चौकी घाट

आयोजन से जुड़े लोगों का मुख्यमंत्री के हाथों सम्मान होना चाहिए क्योंकि देवदीपावली के असली ब्रांड एंबेसडर वही हैं।
- अभिषेक शर्मा, केंद्रीय देवदीपावली

कई संस्थाएं दीपक जलवाने के नाम पर रुपये वसूले रही हैं। कई चेंजिंग रूम बाढ़ में टूट गए तो कुछ गायब हो गए हैं।
-अनंत दीक्षित, तुलसी घाट

घाटों से जुड़ी जितनी गलियों में प्रकाश व्यवस्था की जाए। उतनी कम है, और उनकी मरम्मत भी हो।
-अतुल झिंगरन, डॉ. राजेंद्र प्रसाद घाट

विगत डेढ़ दशकों से घाट के बगल में बहता नाला परेशानी का सबब है। उसकी वजह से दर्शनार्थी आना नहीं चाहते।
-अनिल सिंह खरवार, संत रविदास घाट,

अहिल्याबाई घाट के ऊपर बाड़ा का मलजल सीधे गंगा में गिरता है। आने जाने वाले लोगों को काफी परेशानी होती है।
-विशाल शास्त्री औढ़ेकर, अहिल्याबाई घाट

सफाई समय से नहीं होती प्रकाश की समुचित व्यवस्था की जानी चाहिए। और अतिक्रमण भी है। जिसे प्रशासन द्वारा अविलंब मुक्त कराया जाए।
-गोपाल चंद शर्मा, राणामहल घाट

हनुमानपुरा की भवनिया पोखरी पर पिछले दो सालों से तेल और दीया नहीं आता। हम अपने संसाधन से प्रबंध करते हैं।
-अभिषेक मिश्रा, भवनिया पोखरी

21 साल से हम लोग पानी-बिजली की समुचित व्यवस्था की मांग कर रहे हैं। प्रशासन का सपोर्ट हमे नहीं मिलता।
-कंचन सेठ, दंडी घाट

काशी की जनता की शिकायतें

-रामनगर के शास्त्री घाट पर बहुत अधिक भीड़ हो जाती है लेकिन सुरक्षा की दृष्टि से वहां कोई प्रबंध नहीं किया जाता है।

-रीवां घाट के प्राकृतिक जलस्रोत से एक नाला जुड़ गया है। उससे पेयजल का अच्छा साधन नष्ट होता जा रहा है।

-चौकी घाट के बड़े हिस्से में मकान का मलबा रख दिया गया है। महिलाओं के लिए कपड़ा बदलने का रूम एक कोने में टूटा पड़ा हुआ है।

-अस्सी और राजघाट पर सबसे अधिक अतिक्रमण है। इससे पर्यटकों के बीच छवि खराब हो रही है।

-बहुत से घाटों से जुड़ने वाली गलियां खस्ताहाल हैं। देवदीपावली पर इनमें बहुत भीड़ होती है। लोग चोटिल हो सकते हैं।

काशी के माननीयों का सुझाव

-रामनगर के शास्त्री घाट पर भीड़ नियंत्रण के लिए विशेष सुरक्षा व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि कोई अप्रिय घटना न हो पाए।

-शिवाला घाट, राजेंद्र प्रसाद घाट, सिंधिया घाट के प्राकृतिक जलस्रोतों को भी प्रदूषण की जद में आने से बचाने का प्रयास हो।

-स्नान पर्व के समय चेंजिंग रूम की उपयोगिता सबसे अधिक होती है। इसे ध्यान में रखते हुए उन्हें अविलंब ठीक कराया जाए।

-घाटों पर खोमचे वालों के लिए एक स्थान तय होना चाहिए ताकि उनका भी पेट पलता रहे।

-सभी प्रमुख घाटों से जुड़ी गलियों में प्रकाश व्यवस्था के साथ उनकी मरम्मत का काम भी शीघ्र पूरा होना चाहिए।