अखाड़ों का संसार:कोतवाल के कंधों पर अखाड़ों का सुरक्षा तंत्र, शिविर लगते ही अखाड़ों में बनती है कोतवाली, महाकुंभ की विशेषता जानिए...
महाकुंभनगर। अखाड़ों के भीतर अलग दुनिया है। अनूठी परंपराएं, नियम-कायदे हैं। पद-प्रतिष्ठा पाने वाले लोग अक्सर नियम का उललंघन करके कार्रवाई से बच जाते हैं। या यूं कहें कि उनके खिलाफ कार्रवाई की हिम्मत पुलिस-प्रशासन नहीं जुटा पाता। अखाड़ों में ऐसा नहीं है, सामान्य महात्मा से लेकर अखाड़े के मुखिया आचार्य महामंडलेश्वर तक नियम-कानून में बंधे हैं।
कुंभ व महाकुंभ में अखाड़ों का शिविर लगते ही कोतवाली बनाकर कोतवाल नियुक्ति किए जाते हैं। इनके जिम्मे अखाड़े की आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था रहती है। अखाड़े के भीतर आने-जाने वाले संतों व हर व्यक्ति पर कोतवाल की पैनी नजर रहती है। इनकी अनुमति के बिना कोई अखाड़े के शिविर में प्रवेश नहीं कर सकता।
13 अखाड़ों में धर्म व गुरु के प्रति समर्पण, अनुशासन का पालन सर्वोपरि होता है। शिविर में अनुशासन बिगड़ने न पाए उसकी जिम्मेदारी कोतवाल के ऊपर होती है। कोतवाली अखाड़े के गुरु कुटिया के पास स्थापित होती है, जिसके आस-पास कोतवाल मौजूद रहते हैं। वहीं से पूरी छावनी की निगरानी करते हैं। कोतवाल अखाड़े की प्रत्येक मढ़ियों व नियम-कानून के जानकार होते हैं।
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अनूठी वेशभूषा दिलाती है पहचान
कोतवाल की वेशभूषा उनहें अलग पहचान दिलाती है। उन्हें गाती (धोती, कुर्ता और पगड़ी) पहनते हैं। गले में रुद्राक्ष अथवा स्फटीक की मोटी मालाएं होती हैं। इनके हाथ में मौजूद चांदी की छड़ी शुद्धता का प्रतीक होती है। गलती करने पर वह उससे किसी को मारते हैं तो माना जाता है कि तन-मन की शुद्धता कर रहे हैं।
वस्त्र व छड़ी उन्हें अखाड़े के आराध्य का पूजन करने के बाद आचार्य महामंडलेश्वर अथवा सभापति सौंपते हैं। कोतवाल 12-12 घंटे ड्यूटी करते हैं। नागा संन्यासी इनके सैनिक होते हैं, जिन अखाड़ों में नागा नहीं हैं, वहां युवा संतों को कोतवाल का सैनिक बनाया जाता है।
छावनी प्रवेश के समय तैनात कोतवाल
25 दिनों के लिए होती है नियुक्ति
कुंभ क्षेत्र में अखाड़ों का शिविर लगने और उखड़ने तक कोतवाल सक्रिय रहते हैं। इससे लगभग 25 से 30 दिनों के लिए उनकी नियुक्ति की जाती है। स्वभाव में सख्त, अखाड़े के नियम-कानून के ज्ञाता, निष्पक्ष भाव रखने वाले संत को कोतवाल बनाया जाता है। जो संत अखाड़े से कम से कम 10 वर्षों से जुड़े होते हैं उन्हीं को कोतवाल बनाया जाता है, क्योंकि वह समस्त नियम-कानून को अच्छी तरह से जानते हैं।
अखाड़े अपने संतों की संख्या के अनुरूप कोतवाल बनाते हैं। वैसे हर शिविर में अखाड़े में एक बार में न्यूनतम चार से छह कोतवाल लगाए जाते हैं। स्नान पर्वों पर इनकी संख्या बढ़ाकर 80 से सौ के बीच हो जाती है। जो आचार्य महामंडलेश्वर, महामंडलेश्वर की सुरक्षा करने के साथ नागा संन्यासी को नियंत्रित करते हैं।
महाकुंभ मेला क्षेत्र संगम परेड मैदान पर गश्त करते घुड़सवार पुलिस
कोतवाल के आगे नतमस्तक रहते हैं नागा संन्यासी
अखाड़ों के नागा संन्यासी अत्यंत उग्र स्वभाव के होते हैं। वह अपने आगे किसी को कुछ नहीं समझते, लेकिन कोतवाल के आगे वह नतमस्तक रहते हैं। नागा संन्यासी कोतवाल के सैनिक होते हैं। उनके लिए कोतवाल का आदेश सर्वोपरि होता है। छावनी प्रवेश व राजसी (शाही) स्नान के समय कोतवालों के ऊपर भीड़ नियंत्रण करने की जिम्मेदारी होती है। उसमें उग्र नागा संन्यासी भी कोतवालों के सामने अनुशासनहीनता नहीं करते।
मढ़ी का रखा जाता है ध्यान
जूना अखाड़ा के अंतरराष्ट्रीय प्रवक्ता श्रीमहंत नारायण गिरि के अनुसार अखाड़ों की कार्यप्रणाली निष्पक्ष होती है। सबको समान भाव से देखा जाता है। कोतवाल की नियुक्ति में उसका ध्यान रखा जाता है। गिरि, पुरी, वन, भारती, लामा प्रमुख मढ़ियां हैं। जो संतों के गोत्र के रूप में जानी जाती हैं। कोतवाल की नियुक्ति में समस्त मढ़ियों के संतों को शामिल किया जाता है। जो संत एक कुंभ-महाकुंभ में कोतवाल बन जाता है उसे दोबारा नहीं बनाया जाता है।
वर्ष 2013 व 2019 में मिली है 288 संतों को सजा
यह कोतवाल की सख्ती का ही परिणाम है कि वर्ष 2013 के महाकुंभ में 107 और 2019 के कुंभ मेला में 181 संत नियम विरुद्ध काम करते पकड़े गए। भोर में न जगने, सुबह-शाम समय से पूजा करने, बिना सूचना दिए शिविर से बाहर जाने, कोतवाल के निर्देशों का पालन न करने, भंडार गृह में हाथ न बंटाने व आर्थिक गबन के मामले में संत पकड़े गए थे। इसमें निरंजनी में पांच, जूना में 23, श्रीमहानिर्वाणी में छह, अटल में चार,
आवाहन में 12, आनंद में छह, अग्नि में छह, निर्मोही अनी में सात, निर्वाणी अनी में 11, दिगंबर अनी में नौ, उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा निर्वाण में छह, नया अखाड़ा में पांच व निर्मल अखाड़ा के सात संत नियम विरुद्ध काम करते पाए गए थे। सबको सजा मिली थी।
वहीं, आर्थिक गबन के आरोपित जूना अखाड़ा के पांच संतों को निष्कासित किया गया था। इसी प्रकार वर्ष 2019 के कुंभ मेला में निरंजनी में 11, जूना में 57, श्रीमहानिर्वाणी में 10, अटल में नौ, आवाहन में 19, आनंद में आठ, अग्नि में आठ, निर्मोही अनी में 16, निर्वाणी अनी में 17, दिगंबर अनी में 11, उदासीन पंचायती बड़ा अखाड़ा निर्वाण में सात, नया अखाड़ा में तीन व निर्मल अखाड़ा के पांच संत नियम विरुद्ध काम करने के दोषी मिले। जूना अखाड़ा ने 15 संतों को अनुशासनहीनता में निष्कासित किया था। बाकी को सजा देकर छोड़ दिया गया।
अनोखी है संतों को मिलने वाली सजा
अखाड़े का नियम-कानून तोड़ने वाले साधुओं की सजा अनोखी होती हैं। छोटे-मोटे नियम तोड़ने वाले साधुओं को कोतवाल अपने स्तर पर पिटाई करके, ऊठक-बैठक करवाकर छोड़ देते हैं। इसके अलावा गंगा अथवा जहां कुंभ-महाकुंभ लगता है वहां की पवित्र नदी में भोर में 101 से 151 के बीच डुबकियां लगाने, गुरु कुटिया अथवा रसोई घर में सफाई, बर्तन की सफाई, झाड़ू लगाने की सजा दी जाती है।
महाकुंभ मेला क्षेत्र में जूना अखाड़े के धर्म ध्वजा पर आयोजित भंडारे में प्रसाद ग्रहण करते संत
अगर किसी संत की चोरी करने, किसी के खिलाफ षड्यंत्र रचने जैसी गंभीर शिकायत मिलती है तो उनको अखाड़े के पंच परमेश्वर के सामने पेश किया जाता है। वह सामूहिक राय पर निर्णय लेते हैं। इसमें आर्थिक दंड लगाने के साथ अखाड़े से निष्कासन तक का निर्णय लिया जाता है। आर्थिक दंड पाने वाले को समस्त संतों के लिए भंडारा करना पड़ता है।