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अब महाकुंभ में दंपती ने दान कर दी अपनी बेटी, राखी से 'गौरी' बनी 13 साल की बिटिया, क्या है बड़ी वजह? जानिए...

अब महाकुंभ में दंपती ने दान कर दी अपनी बेटी, राखी से 'गौरी' बनी 13 साल की बिटिया, क्या है बड़ी वजह? जानिए...

ब्यूरो, महाकुंभ नगर। माता-पिता विवाह मंडप के नीचे कन्या दान करते हैं, यही हिंदू रीति भी है। सोमवार को आगरा से आए दंपती ने संगम की रेती पर अपनी 13 वर्षीय बेटी राखी सिंह ढाकरे को जूना अखाड़े को दान कर दिया। गंगा स्नान के बाद गुरुग्राम (हरियाणा) से आए जूना अखाड़ा के संत कौशल गिरि ने वैदिक मंत्रोच्चार के बीच राखी को शिविर प्रवेश कराया और नामकरण किया 'गौरी'। गौरी का पिंडदान 19 जनवरी को शिविर में होगा। सभी धार्मिक संस्कार कराए जाएंगे। उसके बाद से बेटी, गुरु के परिवार का हिस्सा हो जाएगी। मूल परिवार उससे छूट जाएगा।

कन्या-दान कर दंपती ने एक नया अध्याय लिखा

कुंभ, महाकुंभ और माघ मेले में 'दान' की परंपरा है। इतिहास के पन्ने बताते हैं कि राजा हरिश्चंद्र यहां आते थे तो अपना सब कुछ दान कर जाते थे। 'महाकुंभ 2025' में कन्या-दान कर दंपती ने एक नया अध्याय लिख दिया।
 

आगरा में फतेहाबाद रोड पर ढौकी थाने के पास रहने वाले संदीप सिंह पेठा व्यापारी हैं। पत्नी रीमा गृहणी हैं। दो बेटियां राखी और निक्की हैं। बड़ी बेटी राखी 13 साल की है। स्प्रिंग फील्ड इंटर कॉलेज में कक्षा नौ की छात्रा है।

परिवार बोला- हमारा सौभाग्य है 

मां रीमा ने बताया कि गुरु की सेवा में करीब चार साल से जुड़े हैं। कौशल गिरि ने उनके मोहल्ले में भागवत कथा कराई थी, भंडारा भी हुआ था, उसी समय से मन में भक्ति जागृत हुई।

और आगे बताया कि 26 दिसंबर को दोनों बेटियों के साथ महाकुंभ मेला क्षेत्र में आए। गुरु के सान्निध्य में शिविर सेवा में लगे हैं। राखी ने साध्वी बनने की इच्छा जताई थी। उसकी इच्छा पूरी करते हुए कौशल गिरि के माध्यम से सेक्टर 20 में शिविर प्रवेश कराया।

पिता संदीप सिंह का कहना है कि बच्चों की खुशी, मां-बाप की खुशी होती है। बेटी चाहती थी कि साध्वी बने, उसके मन में वैराग्य जागृत हुआ, यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है।

बिना किसी दबाव के परिवार ने दान की बेटी: कौशल

जूना अखाड़ा के महंत कौशल गिरि का कहना है कि परिवार ने बिना किसी दबाव के बेटी का दान किया है। संदीप सिंह ढाकरे और उनकी पत्नी काफी समय से आश्रम से जुड़े हैं।

परिवार चाहता था कि उनकी बेटी साध्वी बने, यही इच्छा गौरी (पूर्व नाम राखी) की भी है। परिवार की इच्छा और सहमति से गौरी को आश्रम में स्वीकार कर लिया गया है। बेटी और पढ़ना चाहेगी तो उसे अध्यात्म की शिक्षा दिलाएंगे।