Headlines
Loading...
25 लाख सैलरी, रहना-खाना फ्री...रूस से जिंदा लौटे दो पेंटरों की कहानी, सस्पेंस थ्रिलर जितनी फिल्मी..पीएम मोदी की पहल पर वापस लौटे...

25 लाख सैलरी, रहना-खाना फ्री...रूस से जिंदा लौटे दो पेंटरों की कहानी, सस्पेंस थ्रिलर जितनी फिल्मी..पीएम मोदी की पहल पर वापस लौटे...

Russia Ukraine War news in hindi: रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत के कुछ युवाओं ने भी जंग लड़ी। इसमें दिलचस्प बात ये रही कि कोई महज इंटर यानी 12वीं पास था तो कुछ ग्रेजुएट थे। इक्का-दुक्का उन युवाओं को छोड़ दिया जाए, जिनके पास प्रोफेशनल डिग्री/डिप्लोमा था तो वो भी ऐसे सामान्य परिवारों से आते थे, जिनकी जिंदगी का संघर्ष आम भारतीय जैसा था।परिस्थितियां मुश्किल थीं, न पास में पैसे थे और नी ही नौकरी। ऐसे में अचानक एक दिन रूस में नौकरी करने का प्रपोजल आया तो वो मना न कर सके। हर महीने लाखों की सैलरी, रहना-खाना फ्री। हवाई जहाज का टिकट तक फ्री वाला ऑफर शानदार था।

बेरोजगार भारतीय युवा जब पहुंचे रूस

कोई एकदम अनजान था तो कुछ को अंदाजा था शायद उन्हें हिंट दे दी गई थी कि ऐसा काम करना है जो फौजी करते हैं। किसी को कहा गया था कि ग्राउंड स्टाफ बनकर फौजियों की मदद करनी है। तो किसी को सिक्योरिटी एजेंसी में गार्ड की नौकरी लगवाने का ऑफर देकर रूस भेज दिया। ये लोग रूस पहुंचे तो 15 दिन की मिलिट्री ट्रेनिंग देने के बाद हाथ में बंदूक थमाकर मोर्चे पर रवाना कर दिया। चलते समय ये हिदायद दी कि कुछ भी हो जाए अपने कमांडर का हुक्म मानना और सामने दुश्मन दिखे तो उसे गोली मार देना।

'कबूतरबाजी' लेकिन 'डंकी' नहीं 

अधिकांश को तो ये पता तक नहीं था कि उन्हें झूठ बोलकर फौजी बनाकर जंग के मैदान में लड़ने-मरने के लिए भेज दिया है। सीमा पार उतरे तो कुछ के पासपोर्ट वहां के हैंडलर्स ने छीन लिए, ताकि भाग न सकें। हालांकि ये 'कबूतरबाजी' का मामला था, जिसमें बढ़िया फ्यूचर का लालच दिखाकर लंडन और कनाडा भेज दिया जाता था। हालांकि उसमें डंकी रूट से भेजते हैं, जिसमें जान का खतरा होने के साथ एक ही केबिन में खाना, वहीं सोना और वहीं टॉयलेट जाना यानी नारकीय स्थितियां होती हैं, उससे इतर इन इन लोगों को शानदार फ्लाइट में बिठाकर मॉस्को भेजा गया। रूस गए युवाओं के सामने इस बात का डर नहीं था कि उन्हें पुलिस पकड़ लेगी और वापस इंडिया डिपोर्ट कर देगी।

वो वीडियो कॉल...

ये अनफेयर होकर भी फेयर डील थी। पेपर्स साइन हो चुके थे। लोग धांसू नौकरी करने रूस जाते हैं। जिनका कलेजा मजबूत था उन्होंने मन मारकर कुछ समय रुकने का फैसला किया। कुछ पहले ही दिन से विरोध करने लगे तो फिर उन्हें धमकाया गया। जैसे तैसे कुछ समय बीतता है. अचानक एक दिन कुछ युवा वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर अपनी हालत बयां करते हैं. उन्होंने भारत सरकार से मदद मांगी तब इस गोरखधंधे का खुलासा हुआ। लिखापढ़त हुई, तब जाकर भारतीयों की वतन वापसी का सिलसिला शुरू होता है।

दहशत का एक साल

रूस-यूक्रेन बॉर्डर पर लड़ने वाले इन गुमनाम फौजियों की इंडिविजुअल अर्थात अलग-अलग कहानियां वायरल हुईं। अब आपको राकेश और ब्रजेश यादव की केस स्टोरी बताते हैं कि कैसे लोगों के घरों में दीवारों की लिपाई-पुताई यानी पेंटिंग करने वाले दो युवा बेहतर भविष्य का सपना लेकर रूस जाते हैं, इस तरह उनकी जिंदगी 360 डिग्री बदल जाती है।

राकेश और ब्रजेश यादव घर की रंगाई-पुताई का काम करते थे. पेंटर की दिहाड़ी में जैसे तैसे बड़ी मुश्किल से परिवार का गुजारा हो पाता था. तभी उन्हें ऐसी JOB का प्रस्ताव मिला जिसे वे ठुकरा नहीं सके. दोनों को रूस में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी के लिए हर महीने करीब 2 लाख रुपये सैलरी का वादा किया गया. ये इतना बड़ा और हैंडसम अमाउंट था, जिसके बारे में उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था. उन्हें लगता था कि इतनी सैलरी से तो सालभर में जिंदगी बदल जाएगी. सैलरी के अलावा कुछ भत्तों की बात करें तो सालाना 25 लाख रुपये की सीटीसी का पैकेज था तो उनके गांव और शहर के अच्छे खासे पढ़े लिखे लोगों को भी नहीं मिलता था. फिर क्या था सोच विचार करने के लिए कोई दूसरा थॉट दिमाग में आया ही नहीं।

मौत जब टक से छूकर निकल गई...

टीओआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक रूस ने उनकी जिंदगी बदल दी, हालांकि उस तरह से नहीं जैसा उन्होंने सोचा था। यूपी के आजमगढ़ का 29 साल का राकेश और पड़ोसी मऊ के 30 साल का ब्रजेश सितंबर 2024 में करीब 8 महीने बाद घर लौटे थे. आपबीती सुनाते हुए उन्होंने शरीर पर लगे जख्मों का हिसाब दिया कि कैसे मौत कई बार उन्हें टक से छूकर निकल गई. कैसे लड़ाई में भूखे-प्यासे लड़ने को मजबूर किया गया था. दोनों मेंटल ट्रामा का शिकार हुए. राकेश ने बताया कि उसे यूक्रेनी सैनिकों से लड़ने के लिए मिलिट्री ट्रकों में ले जाया गया था. कई महीने अस्पताल में रहे. जब तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हस्तक्षेप ने उन्हें इंडिया वापसी की फ्लाइट में बिठा नहीं दिया गया, तब तक उन्हें ये नहीं पता था कि कभी अपने घर वापस जा पाएंगे या नहीं?

धोखे की कहानी और फाइनल टेक अवे

आज की बात करें तो राकेश और ब्रजेश का बस इस इतना टेकअवे है यानी उन्हें इस बात का संतोष है कि वो जिंदा हैं और अपने परिवार के साथ हैं. हालांकि युद्ध और अपने साथ हुए धोखे का सदमा उन्हें अभी भी सताता है. ये तीन भारतीय एजेंट जिन्होंने उन्हें रूसी सेना के लिए काम करने के लिए धोखा दिया, उनकी अधिकांश कमाई हड़प ली, जबकि वे रूस-यूक्रेन युद्ध के मोर्चे पर अपनी जान जोखिम में डाल रहे थे। राकेश ने कहा, 'हम 17 जनवरी, 2024 को रूस पहुंचे और हमारे एजेंट सुमित और दुष्यंत ने एक रूसी नागरिक की मदद से हमारे नाम से बैंक खाते खोले और हम सबको 7 लाख रुपये एडवांस पेमेंट दिया। हमें ये एक अच्छी शुरुआत लगी। लेकिन एजेंटों ने हमारी बैंक डिटेल और डेबिट कार्ड भी ले लिए।

कुछ रूसी सैनिकों ने खुलासा किया कि उन्हें सेना के साथ लड़ने के लिए उनके भारतीय एजेंटों के जरिए बेचा गया था. राकेश ने ये भी बताया, 'पहले हथियार और गोला-बारूद ट्रक में लोड करने के साथ बंकरों की साफ-सफाई और खाना बनाने जैसा काम मिला. लेकिन जब रूसी सैनिकों की मौतों से उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ा, तब अपनी जान बचाने के लिए मजबूरी में हथियार उठाने पड़े थे।'