पीएम मोदी के प्रस्तावक पंडित गणेश्वर शास्त्री को मिलेगा पद्मश्री, राम मंदिर और काशी विश्वनाथ कॉरिडोर का निकाला था मुहुर्त...
Republic Day 2026: 76वें गणतंत्र दिवस पर सरकार की ओर से 'पद्म सम्मान' की सूची जारी की गई थी। बता दें कि गणतंत्र दिवस से पहले विज्ञान, खेल, कला, साहित्य समेत अलग-अलग क्षेत्रों में उल्लेखनीय योगदान देने वाली हस्तियों को 'पद्म सम्मान' देने की घोषणा की जाती है।
वाराणसी। अयोध्या के राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का शुभ मुहूर्त निकालने वाले काशी के विद्वान गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ को पद्मश्री पुरस्कार मिलेगा। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर शनिवार शाम केंद्र सरकार ने 2025 के लिए पद्म पुरस्कारों की घोषणा की है। पद्मश्री पुरस्कारों की सूची में 113 नाम शामिल है।
इसमें गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ का भी नाम है। गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ को पद्मश्री मिलने की घोषणा पर काशी में हर्ष का माहौल है। 09 दिसम्बर 1958 को जन्में गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ रामघाट स्थित वल्लभराम शालिग्राम सांगवेद विद्यालय का संचालन करने के साथ इसमें बटुकों को पढ़ाते भी है।
श्री गीर्वाणवाग्वर्धिनी सभा काशी के परीक्षाधिकारी मंत्री के पद पर कार्य करते हुए धार्मिक, सामाजिक राजनैतिक एवं विभिन्न प्रश्नों पर शास्त्रीय दृष्टि से व्यवस्था प्रदान करने के साथ विश्वस्तरीय वेदशास्त्र परीक्षाओं के प्रबंधन में दिशा निर्देश देते है।
श्री वैदिक सिद्धान्त सरंक्षिणी सभा से जुड़े विद्वान गणेश्वर शास्त्री द्रविड़ ने राम मंदिर के शिलान्यास का भी मुर्हूत निकाला था। इनके पिता स्मृतिशेष राजेश्वर शास्त्री द्रविड़ को भी पद्मभूषण पुरस्कार मिल चुका है। मूलत: दक्षिण भारत तमिलनाडु के निवासी पं.गणेश्वर शास्त्री द्रविण ग्रह, नक्षत्र, चौघड़ियों के सबसे बड़े जानकारों में से एक हैं।
गणेश्वर शास्त्री को बड़े-बड़े मुहूर्तों के धर्मसंकट से निकालने में महारथ हासिल है। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चुनाव प्रस्तावक भी रहे। खास बात यह रही कि प्रधानमंत्री ने पं.गणेश्वर शास्त्री द्रविण के साथ ही नामांकन किया था। श्री काशी विश्वनाथ मंदिर कॉरिडोर के उद्घाटन का मुहूर्त भी निकाला था।
इसके पहले पं.गणेश्वर शास्त्री द्रविण को तर्कवागीश, राष्ट्रीय पंडित पुरस्कार, धर्मसंस्कृति महाकुंभ, जगद्गुरु रामानंदाचार्य, माणिक्यगौरवम, पंडित शंभूनाथ मिश्र और ज्योतिषविद्यारत्नम समेत कई सम्मान मिल चुका हैं। आचार्य द्रविण बिना सिला धोती पहन नंगे पाव ही रहते है। देश में जहां वर्षा नहीं होती हैं, वहां आचार्य को बुलाकर अनुष्ठान कराया जाता है।