महाकुंभ में नहाने वालों के स्वास्थ्य पर हुआ ऐसा हाल, सामने आई रिपोर्ट ने उड़ाए हर एक के होश, मिला ये खतरनाक बैक्टीरिया...
Mahakumbh 2025: प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ 2025 के दौरान गंगा और यमुना नदियों में बढ़ते प्रदूषण पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) को एक रिपोर्ट सौंपी है। इस रिपोर्ट में विशेष रूप से नदियों में फेकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की बढ़ती मात्रा को उजागर किया गया है। यह बैक्टीरिया नदियों में सीवेज के गंदे पानी की उपस्थिति का संकेतक है। रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में नदी जल नहाने और अन्य धार्मिक गतिविधियों के लिए सुरक्षित नहीं है।
महाकुंभ और प्रदूषण का बढ़ता स्तर
CPCB की रिपोर्ट के अनुसार, गंगा और यमुना नदियों में फेकल कोलीफॉर्म की मात्रा नहाने योग्य जल गुणवत्ता के मानकों से अधिक पाई गई। सामान्यतः, फेकल कोलीफॉर्म की सीमा 2500 यूनिट प्रति 100 मिलीलीटर होनी चाहिए, लेकिन महाकुंभ के दौरान यह सीमा पार कर गई है। इससे यह स्पष्ट होता है कि सीवेज का प्रवाह नदियों में निरंतर जारी है, जिससे जल की गुणवत्ता में गिरावट हो रही है।
एनजीटी पहले ही उत्तर प्रदेश सरकार को सीवेज प्रबंधन योजना को प्रभावी बनाने और प्रदूषण रोकने के लिए कड़े निर्देश दे चुका है। हालांकि, वर्तमान रिपोर्ट बताती है कि इन निर्देशों का पालन संतोषजनक ढंग से नहीं किया गया।
श्रद्धालुओं को जल गुणवत्ता की जानकारी देने का निर्देश
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने राज्य सरकार से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि श्रद्धालुओं को नदी जल की गुणवत्ता की जानकारी दी जाए। यह श्रद्धालुओं के स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए आवश्यक है। दिसंबर 2024 में एनजीटी ने यह भी कहा था कि महाकुंभ के दौरान गंगा जल की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए और वह नहाने और पीने के लिए उपयुक्त होना चाहिए। लेकिन, मौजूदा स्थिति इस दिशा में प्रगति की कमी को दर्शाती है।
2019 के कुंभ का अनुभव
यह पहली बार नहीं है जब गंगा-यमुना के प्रदूषण पर सवाल उठे हैं। 2019 के प्रयागराज कुंभ मेले में भी जल गुणवत्ता खराब पाई गई थी। सीपीसीबी की रिपोर्ट के अनुसार, प्रमुख स्नान के दिनों में करसर घाट पर बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) और फेकल कोलीफॉर्म का स्तर सीमा से अधिक था। यमुना नदी में घुलनशील ऑक्सीजन का स्तर मानकों पर खरा उतरा, लेकिन अन्य तत्व, जैसे पीएच, बीओडी और फेकल कोलीफॉर्म लगातार मानकों से अधिक पाए गए। यह स्थिति इस बात का संकेत है कि पिछले अनुभवों से कोई खास सीख नहीं ली गई।
प्रयागराज महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजनों में लाखों श्रद्धालु गंगा और यमुना में डुबकी लगाते हैं। यह धार्मिक भावना का प्रतीक है, लेकिन जल प्रदूषण न केवल इस भावना को ठेस पहुंचाता है, बल्कि श्रद्धालुओं के स्वास्थ्य को भी जोखिम में डालता है। आवश्यकता है कि सरकार और संबंधित एजेंसियां समन्वित प्रयासों से इस समस्या का समाधान करें और गंगा-यमुना की पवित्रता और पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखें।