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संपादकीय: पहलगाम हमले के बाद सजगता की एक नई पुकार : श्री ए. के. केशरी

संपादकीय: पहलगाम हमले के बाद सजगता की एक नई पुकार : श्री ए. के. केशरी


संपादकीय लेखक श्री ए. के. केशरी चीफ़ एडिटर व वरिष्ठ पत्रकार ) : जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हालिया आतंकी हमला एक बार फिर इस सच्चाई को सामने लाता है कि सीमापार आतंकवाद अब भी एक जीवंत खतरा बना हुआ है और क्षेत्र में शांति स्थापित करना एक दीर्घकालिक चुनौती है। अनुच्छेद 370 के निरसन के बाद जिस सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता की अपेक्षा की गई थी, ऐसे हिंसक कृत्य उस प्रक्रिया को बाधित करते हैं।

आतंकवाद केवल एक सुरक्षा संकट नहीं है, यह हमारे लोकतांत्रिक और संवैधानिक ढांचे पर सुनियोजित प्रहार भी है। जब सुरक्षा बलों और नागरिकों को निशाना बनाया जाता है, तो यह केवल मानवीय क्षति नहीं होती—यह संविधान में निहित जीवन के अधिकार (अनुच्छेद 21) और राष्ट्रीय एकता के आदर्शों पर सीधा हमला होता है।

ऐसे में रॉ (RAW), खुफिया ब्यूरो (IB) और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) जैसे सुरक्षा संस्थानों को न केवल अधिक सक्रियता से खुफिया सूचना जुटाने की दिशा में काम करना होगा, बल्कि कानूनों—विशेषतः गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA)—के तहत शीघ्र एवं सख्त कार्यवाही सुनिश्चित करनी होगी। इन संस्थाओं को आवश्यक संसाधन और स्वतंत्रता प्रदान की जानी चाहिए ताकि वे प्रभावी ढंग से कार्य कर सकें।

भारत ने पूर्व में सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक जैसे साहसिक कदमों के माध्यम से यह दिखाया है कि वह जवाब देने में सक्षम है। किंतु प्रतिक्रिया की नीति रणनीतिक और दूरदर्शी होनी चाहिए—सिर्फ सैन्य प्रतिक्रिया पर नहीं, बल्कि व्यापक सुरक्षा योजना और कूटनीतिक संतुलन पर आधारित।

इस संदर्भ में देश की नागरिक चेतना और विशेषकर युवाओं की भूमिका भी अहम है। सुरक्षा केवल सीमाओं पर तैनात बलों की जिम्मेदारी नहीं है; यह एक नागरिक धर्म भी है। राष्ट्रवाद केवल भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि संवैधानिक चेतना और ज़िम्मेदारी से युक्त होना चाहिए।

यह हमला भारत के लिए केवल एक और आँकड़ा न बने, बल्कि नीति निर्धारकों, सुरक्षा संस्थानों और समाज के लिए आत्मनिरीक्षण और पुनर्निर्धारण का अवसर बने। हमें ऐसी रणनीति अपनानी होगी जो एक ओर आतंक के विरुद्ध कठोर हो, और दूसरी ओर संविधान और लोकतंत्र के प्रति सजग भी।

राज्य को केवल अपनी सीमाओं की नहीं, अपने मूल्यों की भी रक्षा करनी है—शांति, स्वतंत्रता और न्याय की। आतंक के सामने भारत को भय या आवेश से नहीं, संकल्प से उत्तर देना होगा।

--जय हिंद !! जय भारत !!!
--शेष अगले अंक में