असम । पूरा देश इस समय जहां कोरोना महामारी की दूसरी लहर की चपेट में है, तो वहीं पिछले महीने 8 मई को 72 सीटों वाले एक विमान ने निचले असम में एक हवाई अड्डे पर लैंड किया. विमान से बाहर आए 24 यात्रियों को गमोस और एरोनिस (बोडो स्कार्फ) उपहार में दिए गए. साथ ही वहां जमा हुई छोटी भीड़ ने उन लोगों से कहा कि रूपसी एयरपोर्ट में आपका स्वागत है. रूपसी एयरपोर्ट पर 38 साल बाद किसी कमर्शियल विमान ने लैंड किया है.
हवाई अड्डे से करीब 15 किलोमीटर दूर स्थित धुबरी शहर के एक पत्रकार और निवासी ज्योतिर्मय चक्रवर्ती ने कहा कि जश्न मनाने का एक कारण था. रूपसी की उड़ान इतिहास का एक हिस्सा बन जाएगी. धुबरी जिले की सीमा के करीब कोकराझार जिले में स्थित रूपसी कभी एक रणनीतिक हवाई पट्टी थी, जिसमें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान युद्धक विमान रखे जाते थे.
दशकों तक छोड़े जाने के बाद पिछले महीने क्षेत्रीय कनेक्टिविटी के लिए केंद्र सरकार की उड़ान (UDAN) योजना के तहत इसका पुनर्विकास किया गया. इससे न केवल निचले असम, जो बांग्लादेश की सीमा में है, बल्कि बंगाल और मेघालय के लोगों को भी फायदा होगा. ज्योतिर्मय चक्रवर्ती ने कहा कि हमें एक फ्लाइट पकड़ने के लिए 300 किलोमीटर गुवाहाटी या 250 किलोमीटर दूर बंगाल के सिलीगुड़ी की यात्रा करनी होती है. इसमें आसानी से छह से सात घंटे लग जाते हैं, जो कभी-कभी उड़ान से भी लंबी होती है.Thank You all🙏
— Rupsi Airport, Assam (@aairupairport) May 9, 2021
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धुबरी के लेखक और पत्रकार बिजय शर्मा ने कहा कि अंग्रेजों की तरफ से लगभग 3,000 बीघा चाय बागान की जमीन पर बना रूपसी द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान मित्र देशों की सेना के लिए एक रणनीतिक स्थान बन गया. ये एक जंगल के बीच में स्थित था और युद्धक विमानों के लिए एकदम सही था. अंग्रेजों ने रूपसी में लगभग 52 जाल (छलावरण) वाले हैंगर बनाए थे, जो युद्ध के लिए रणनीतिक और परिचालन आवश्यकताओं को पूरा करते थे. धुबरी में रहने वाले एक वकील मसूद जमान ने कहा कि विश्व युद्ध के दौरान रूपसी संभवत: एशिया की सबसे लंबी हवाई पट्टी थी. लोग भूल जाते हैं कि ये कितना महत्वपूर्ण था.