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कानपुर देहात : विलुप्त हो रहें बुनकरों की कला को अलग पहचान देगा प्रशासन
कानपुर देहात । आधुनिक युग में कानपुर देहात जनपद में पीढ़ी दर पीढ़ी बुनकर का काम करने वाले लोग और उनकी यह कला अब विलुप्त होने की कगार पर हैं। हस्तनिर्मित सूती वस्त्र की जगह आधुनिक दौर में तरह-तरह के फैन्सी कपड़ों ने ले ली है। इसे देखते हुए जिला प्रशासन ने इन कलाओं को फिर से उनकी पहचान दिलाने की ठानी है।
केन्द्र और प्रदेश सरकार 'लोकल फ़ॉर वोकल' के लिए लगातार काम कर रही है। पुरानी तकनीक और कलाएं विलुप्त न हों, इसके लिए सरकार ने कई योजनाएं भी बनाई हैं। इन योजनाओं का कुछ लोग लाभ ले रहे हैं लेकिन पर्याप्त जानकारी के अभाव में सभी जरूरतमंद इसका लाभ नहीं ले पा रहे हैं। जिले के भोगनीपुर तहसील क्षेत्र के मूसानगर बांगर में सन् 1964 से बुनकर समाज के 70 परिवार हस्त निर्मित सूती वस्त्र उद्योग का कार्य करते आ रहे थे लेकिन आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण 50 परिवारों ने यह काम बंद कर दिया है। उनकी मशीनें आज जंग खा रही हैं। आज के समय सिर्फ 20 परिवार ही यह काम कर रहे हैं। अन्य सभी परिवार या तो मजदूरी कर रहे हैं या कोई छोटा मोटा काम करके पेट पाल रहे हैं।
सही प्लेटफार्म न मिलने से काम बंद हुआ 'हिन्दुस्थान समाचार' ने जब इन 70 परिवारों के एक सदस्य राम शंकर से बात की तो उन्होंने बताया कि काम बंद करने के पीछे सबसे बड़ा कारण यह रहा है कि बुनकर समाज को हस्तनिर्मित सूती वस्त्र को तैयार करने के बाद कोई अच्छा प्लेटफार्म नहीं मिला। हमारे बनाये हुए वस्त्रों को अच्छा मार्केट मिल जाता तो कपड़ों की बिक्री बढ़ जाती। हम मेहनत करके अपना पेट पालते हैं पर आज तो पेट पालना भी मुश्किल हो रहा है। दूसरा कारण यह है कि आज के आधुनिक समय में लोग हस्तनिर्मित सूती वस्त्रों को भूलकर तरह-तरह के फैन्सी कपड़ों को ज्यादा पसंद करते हैं। ऐसे में अब बुनकर समाज के लगभग 20 ही परिवार बचें है जो आज भी ये काम कर रहे हैं। इनके द्वारा हस्त निर्मित सूती वस्त्र लोकल बाजार में बिकते हैं, जिससे इनके घर का खर्च तक नहीं निकलता है। इनको परिवार चलाने में दिक्कत होती है।
नतीजनत, ये बुनकर समाज के लोग ईंट भट्ठों में काम करने लगे हैं या फिर दूसरे राज्यों में जाकर काम धंधा कर परिवार का पेट पाल रहे हैं। हस्त निर्मित वस्त्रों की मार्केटिंग में हो मदद हरी बाबू (बुनकर) बताते हैं कि हम जो काम करते हैं अगर उसमें सरकार मदद करे तो यह काम और बढ़ सकता है। जिन परिवारों ने यह काम बंद किया है वो फिर से काम शुरू कर सकते हैं। हम मेहनत कर सकते हैं पर इसकी मार्केटिंग में अगर सरकार मदद करे तो उनका बहुत आभार होगा। तब इस परम्परागत पेशे से हम अपना पेट भी पाल सकेंगे और बच्चों को अच्छी शिक्षा भी दे सकेंगे।
मुख्य विकास अधिकारी ने मदद का आश्वासन दिया मुख्य विकास अधिकारी सौम्या पाण्डे ने 'KESHARI NEWS24' से खास बातचीत में बताया कि जिला प्रशासन सरकार की मंशा के अनुसार लगातार जनहित में कार्य कर रही है। मीडिया के माध्यम से बुनकरों की यह समस्या उनके सामने आई है, इसपर जल्द से जल्द टीम बनाकर बुनकरों की हर सम्भव मदद की जाएगी।
सरकार द्वारा चलाई जा रही सभी योजनाओं का लाभ इन परिवारों को मिलेगा। उन्होंने बताया कि हस्त निर्मित कपड़ों की कला से देश की अलग पहचान है, इसे विलुप्त नहीं होने दिया जायेगा। बुनकर समाज की आर्थिक स्थित सुधारने के लिए और उनको अच्छी मार्केटिंग देने के लिए नगर पंचायत के अधिशाषी अधिकारी और जीएम, डीआईसी को लगाकर इनके द्वारा बनाये गए हस्त निर्मित सूती कपड़ों की मार्केटिंग बढ़ायी जाएगी।