संपादकीय
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के साथ तालमेल बैठाने में ट्विटर मर्यादा में रहे
संपादकीय । आखिरकार ट्विटर सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित (इंटरमीडियरी गाइडलाइंस एंड डिजिटल एथिक्स कोड) नियमों के अनुपालन को लेकर तैयार होता दिख रहा है। देखना है कि वह अनुपालन सही तरह करता है या नहीं? यह सवाल इसलिए, क्योंकि वह लगातार दोहरे रवैये का परिचय दे रहा है। उसकी हरकतों को देश के आंतरिक मामलों में सीधा हस्तक्षेप भी कहा जा सकता है। ट्विटर के रवैये में बदलाव के पीछे भारत सरकार की उस अंतिम चेतावनी को भी एक वजह माना जा रहा है, जिसमें सरकार ने स्पष्ट कर दिया था कि नए नियमों को न मानने पर ट्विटर आपराधिक जवाबदेही को लेकर विधिक संरक्षण गंवा सकता है। ट्विटर की हीलाहवाली का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि इस साल फरवरी में ही नए नियम बन जाने के बाद भी उसने अपेक्षित अनुपालन की दिशा में कदम नहीं बढ़ाए।
नि:संदेह माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर एक वैश्विक दिग्गज है, जिसकी हैसियत कई देशों की जीडीपी से भी बड़ी है, लेकिन शायद इसी खुमारी में उसने यह गफलत पाल ली कि वह भारतीय गणराज्य से भी बड़ा है। उसके रवैये पर अदालत में एक याचिकाकर्ता ने यह सवाल उठाया कि नए नियमों के तहत प्रत्येक भारतीय नागरिक को यह अधिकार है कि वह ट्विटर पर किसी अपमानजनक, असत्य और फर्जी ट्वीट के खिलाफ स्थानीय शिकायत अधिकारी के समक्ष आपत्ति जता सकता है, क्योंकि ट्विटर एक महत्वपूर्ण इंटरनेट मीडिया माध्यम है, लेकिन वह अपनी शिकायत दर्ज नहीं करा पाए, क्योंकि ट्विटर ने ऐसा कोई अधिकारी नियुक्त ही नहीं किया था। दिल्ली पुलिस ने भी यह रेखांकित किया कि जब उसने टूलकिट मामले की जांच शुरू की तो ट्विटर ने ऐसा व्यवहार किया, मानों वही जांच संस्था और निर्णायक प्राधिकारी हो।
हाल में ट्विटर ने दावा किया कि महामारी के दौरान जनसंवाद और लोगों तक मदद पहुंचाने में उसने एक प्रभावी माध्यम की भूमिका निभाई और वह जनसेवा की राह में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर मंडराते खतरे को लेकर चिंतित है। इसमें कोई संदेह नहीं कि तमाम अन्य क्षेत्रों में तकनीकी तरक्की की तरह सोशल नेटवर्क मंचों की उपयोगिता भी असंदिग्ध है। उन्होंने मानवीय संवाद को क्रांतिकारी बना दिया है, लेकिन क्या इसकी आड़ में उन्हेंं मनमानी करने की छूट दी जा सकती है?
नए आइटी नियमों पर अपने जवाब में ट्विटर ने कहा कि वह भारत की जनता के लिए बेहद प्रतिबद्ध है और देश-दुनिया के नागरिक समाज के साथ नए आइटी नियमों के मूल तत्वों को लेकर चिंतित है। उसका दावा है कि इन नियमों से जुड़े कुछ पहलू स्वतंत्र एवं खुले सार्वजनिक संवाद की राह बाधित करने वाले हैं। केंद्रीय सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने ट्विटर की इन खोखली दलीलों की धज्जियां उड़ाकर रख दीं।
उन्होंने कहा कि सरकार खुद निजता का सम्मान करती है, लेकिन जहां तक वाक् स्वतंत्रता की बात है तो उस पर ट्विटर की अपनी नीतियां ही अस्पष्ट हैं। वह मनमाने ढंग से लोगों के अकाउंट बंद करता है, ट्वीट डिलीट करता है। एक चैनल ने ट्विटर की ऐसी मनमानी और दोहरे रवैये के सुबूत भी दिए। इस चैनल ने गर्भपात के अधिकार के आलोक में महिला अधिकारों पर एक कार्यक्रम केवल डिजिटल मीडिया के लिए प्रसारित किया। ट्विटर ने उसे फिल्टर कर दिया। दस मिनट के उस वीडियो में प्रतिगामी कानूनों को रद करने और महिलाओं को विकल्प देने को लेकर तर्क दिए गए थे। ट्विटर ने उसे संवेदनशील सामग्री करार देकर चैनल की पहुंच को सीमित कर दिया। परिणामस्वरूप चैनल की इंटरनेट मीडिया टीम दर्शकों की प्रतिक्रिया नहीं जान सकी। ऐसे में एक बड़ा सवाल यही है कि क्या गर्भपात पर संवाद संवेदनशील सामग्री की श्रेणी में आता है?
आइटी विशेषज्ञ जितिन जैन का कहना है, ‘ट्विटर एक कॉरपोरेट बोर्ड रूम से वैश्विक सामग्री से जुड़े विमर्श को नियंत्रित करने का प्रयास कर रहा है। सामग्री को लेकर उसका निर्णय अक्सर अस्पष्ट और नीतिगत विरोधाभासों एवं दोहरे रवैये से परिपूर्ण होता है। प्राय: यह दीर्घकालिक नीति और सिद्धांतों के बजाय राजनीतिक परिवेश से प्रेरित होता है। ‘यह वास्तव में एक गंभीर आरोप है और ट्विटर को अपने कृत्यों को लेकर पारदर्शिता बढ़ानी होगी। साथ ही उपदेश देने से भी बाज आना चाहिए। वह दावा करता है कि जनता के हितों को सुरक्षित रखना जनप्रतिनिधियों, उद्योगों और नागरिक समाज की साझा जिम्मेदारी है। ऐसा कर उसने खुद को जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों और भारतीय नागरिक समाज के समकक्ष ला खड़ा किया है। यह बिल्कुल दायरे से बाहर वाली बात है।
कोई भी कंपनी चाहे वह देसी हो या विदेशी-बहुराष्ट्रीय, सरकार के साथ अपनी तुलना नहीं कर सकती, जिसे जनता का जनादेश प्राप्त होता है। न ही वह खुद को भारत के नागरिक समाज वाले पाले में खड़ा कर सकती है। ट्विटर के दुराग्रह और हठ ने भारत सरकार को तल्ख प्रतिक्रिया देने के लिए उकसाने का काम किया। सरकारी बयान में कहा गया, ‘ट्विटर फिजूल की बातें बंद कर कानूनों का अनुपालन करे। विधि निर्माण और नीतियों का खाका बनाना संप्रभु राष्ट्र का अधिकार है और ट्विटर महज एक इंटरनेट मीडिया मंच है और उसे यह बिल्कुल हक नहीं कि वह बताए कि भारत का विधिक नीतिगत ढांचा कैसा होना चाहिए...।’ भारत में शायद ही कोई सरकार किसी कंपनी को लेकर इतनी तल्ख प्रतिक्रिया दे। जहां तक नागरिकों के हितों की सुरक्षा का सवाल है तो ट्विटर यह अवश्य जान ले कि न तो देश के संविधान और न ही जनता ने यह दायित्व किसी व्यक्ति या कंपनी को सौंपा है।
संविधान के अंतर्गत कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की यह साझा जिम्मेदारी है। ऐसे में कोई नागरिक या संस्थान ट्विटर को इन संस्थाओं से ऊपर कार्य करने की इजाजत नहीं देगा कि वह देश में मूल स्वतंत्रता प्रदान करने वाला सर्वोच्च निकाय बन जाए। उम्मीद है कि दुनिया के सबसे बड़े और गतिशील लोकतंत्र के साथ तालमेल बैठाने में ट्विटर खुद को मर्यादा में रखेगा। उसे इस गलतफहमी से निकलना होगा कि वह भारतीय गणतंत्र की जगह ले सकता है। यदि वह इस बुनियादी सच्चाई को नहीं समझता तो फिर उसे कड़ाई से इसे समझना होगा।